Book Title: Jain Tattva Kalika
Author(s): Amarmuni
Publisher: Aatm Gyanpith

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Page 594
________________ २६६ | जैन तत्त्वकलिका : अष्टम कलिका कर्मादानों का सर्वथा त्याग-भोगोपभोग्य पदार्थों को प्राप्त करने के लिए श्रावक को कोई न कोई व्यवसाय अथवा आजीविका का साधन करना पड़ता है | परन्तु भगवान् ने श्रावकों के लिए १५ प्रकार के कर्मादान रूप ( कर्मों का अधिकाधिक बन्ध करने वाले) व्यवसायों का सर्वथा निषेध किया है । १५ कर्मादान' इस प्रकार हैं - * (१) अंगारकर्म - कोयले बनाकर बेचने का व्यवसाय करना, ( २ ) वनकर्म - वन ठेके पर लेने, वृक्षादि कटवाने या वनस्पति को छेदन-भेदन करने का व्यवसाय, (३) शकटकर्म - अनेक प्रकार के गाड़े, गाड़ी या रथ आदि वाहन बनाने बनवाने का व्यवसाय करना, (४) भाटककर्म - बैल, भैंसा, गाय आदि पशुओं को भाड़े (किराये पर देना, अथवा बड़े-बड़े मकान बनवाकर किराये पर देने का धंधा करना; (५) स्फोटक - सुरंग खोदने, बारूद से पत्थर फोड़ने का धंधा करना, (६) दन्तवाणिज्य - हाथीदाँत, पशुओं के नख, रोम, सींग, चमड़ा, गाय का चामर आदि का व्यवसाय करना, (७) लाक्षावाणिज्य - लाख अनेक सजीवों की उत्पत्ति की कारण है, अतः लाख का व्यापार करना ( ८ ) रसवाणिज्य- मदिरा या सिरका आदि बनाने एवं बेचने का धंधा करना, (६) विषवाणिज्य - विष, विषैली चीजों या शस्त्रास्त्र आदि बेचने बनाने का धंधा करना, (१०) केशवाणिज्य - केशवाले दास-दासियों तथा पशुपक्षियों का क्रय-विक्रय करना (११) यंत्रपीड़नकर्म - बड़े-बड़े यंत्रों (मशीनों) द्वारा तिल, ईख आदि पेरने का व्यवसाय करना, (१२) निलछिनकर्म - पशुओं Sataye बनाने (खस्सी करने) का धंधा करना, (१३) दवाग्निदान कर्मवन को आग लगाने का कर्म करना (१४) सरोह्र द - तड़ागपरिशोषणकर्म - सरोवर, नदी, ह्रद, तालाब आदि जलाशयों को सुखाने का व्यवसाय करना (१५) असतीजनपोषणता कर्म-कुलटा, व्यभिचारिणी स्त्रियों को रखकर उनसे व्यभिचार करवाने का व्यवसाय करना अथवा शिकारी कुत्त े, बिल्ली, मुर्गा, आदि को पालना - पोसना, असामाजिक तत्त्वों को आश्रय देना आदि । विवेकशील गृहस्थ श्रावक को इन १५ कर्मादानरूप व्यवसायों का सर्वथा परित्याग करना चाहिए । उपभोगपरिभोग परिमाणव्रत के ५ अतिचार हैं - (१) सचित्ताहार -- १. कम्मओ य समणोवासएणं पणदसकम्मादाणाई जाणियव्वाइ, न समायरियव्वाइ, तं जहा - इंगालकम्मे वणकम्मे साडीकम्मे भाडीकम्मे फोडीकम्मे दंतवाणिज्जे लक्खवाणिज्जे रसवाणिज्जे विसवाणिज्जे केसवाणिज्जे जंतपीलकम्मे निलंछणकम्मे, दवग्गिदावणंया सरदहत्तलाय सांसणया असईजणपोसणया : - उपासकदशांग अ० १

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