Book Title: Jain Tattva Kalika
Author(s): Amarmuni
Publisher: Aatm Gyanpith

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Page 553
________________ अस्तिकायधर्म-स्वरूप | २२७ सभी अद्धाकाल के हैं। निश्चय काल तो जीव-अजीव की पर्याय है। वह लोक-व्यापी है । उसके विभाग नहीं होते । काल से वह अनादि-अनन्त है। ___ संक्षेप में, काल के (काल के सारे विभागों को) अतीत (भूतकाल), वर्तमान (प्रत्युत्पन्न) और अनागत (भविष्यत्काल) ये तीन स्वरूप हैं । यदि कोई पूछे भूतकाल को वि तने वर्ष बीत गए ? या भविष्य में कितने वर्ष आयगे ? इन दोनों प्रश्नों का उत्तर हम गणना से बता नहीं सकते । क्योंकि काल का प्रवाह बीच में रुकता नहीं है । वह एक के बाद एक दिन, मास, वर्ष आदि के रूप में अतीत में भी आता-जाता रहा है और भविष्य में आता-जाता रहेगा। ऐसी स्थिति में काल का कोई अन्त आ ही नहीं सकता। अतः हमें अपनी सूक्ष्म बुद्धि से सोचकर कहना पड़ेगा कि भूतकाल में अनन्त वर्ष व्यतीत हो गए और भविष्य में अनन्त वर्ष आयगे इस कारण काल अनन्त है, अनन्त समयात्मक है । भूतकाल बड़ा या भविष्यकाल ? इस प्रश्न का उत्तर जैन सिद्धान्तानुसार भविष्यकाल के पक्ष में दिया गया है। वर्तमानकाल एक समयात्मक है, उसे ही नैश्चयिककाल समझना चाहिए। शेष सब व्यावहारिककाल हैं। काल का सबसे सूक्ष्म विभाग 'समय' है, जो अविभाज्य है । 'समय' का स्वरूप समझाने के लिए शास्त्रकार ने कमलशतपत्रभेद का और वस्त्र-विदारण की क्रिया का उदाहरण दिया है। अर्थात्-कमल के प्रत्येक पत्ते को बींधने में जितना काल लगता है, अथवा अनेक तन्तुओं से निर्मित वस्त्र के एक तन्तु के प्रथम रोएँ के छेदन में जितना काल लगता है, उसका बहुत ही सूक्ष्म अंश यानी असंख्यातवाँ भाग- 'समय' कहलाता है। काल गणना को तालिका अविभाज्य काल =१ समय असंख्य समय = १ आवलिका २५६ आवलिका= १ क्षुल्लकभव या साधिक १७ क्षुल्लकभव (सबसे छोटी आयु) या एक श्वासोच्छ्वास । २२२३. आवाल १प्राण १ भगवती सूत्र ११।११।१२८ २ ओसप्पिणी अणंता, पोग्गलपरियट्टओ मुणेयव्वो । तेऽणंता तीयद्धा, अणागयद्धा अणंतगुणा ।। ३ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्ति-वर्तमानः पुनर्वर्तमानकसमयात्मकः । - अस्मनैश्चयिकः सर्वोऽप्यन्यस्तु व्यावहारिकः ॥१६॥ ४ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति-कालाधिकार से ।

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