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जैन सुवोध गुटका ।
१६ सन को शिक्षा. (तर्ज-कांटो लागोरे देवरिया मोसूं संग चल्यो नहीं जाय)
तों को वार २ समझाऊं रे मनवा, जिनवर के गुण गाले ।। टेर ।।जैसे पूर नदी का बहावे, जूं जोधनिया कल, ढलजावे । किसपे करे मरोड़, छोड़ जाना है भेद तू पाले ॥१॥ मात पिता कुटुम्ब परिवारा मोह रह्यो रमणी के लारा । स्वार्थ के साथी जान मान तू सहकार्य में प्राले ॥ २ ।। माया दोलची कहलाने, आत जात ये देती जावे। चंचल चपला जूं निहार, नार नातेसी न्यायलगाले ॥३॥ गोरा बदन देख घुमरावे, रंग पतंग सा कल उड़जावे । क्या गंधी देह का गर्व, अन जैसे ये पलटा खाले ॥ ४ ॥ छत्रपति का राजा राणा, देखत खाक में जाय समाणा । सरपे काल निशाना दिखाना, गफलत दूर हटाले ।। ५ ।। गुरू प्रसादे चौथमल कहता, जो नाम प्रभुका हरदम लेता। तिरजावे संसार सार, यही दया धर्म को पाले ॥ ६ ॥
२० सत्य की महत्वता (तर्ज-वारी जाऊंरे सांवरिया तुम पर वारनारे) · सत्य मत हारणारे, सत्य के ऊपर तन मन धन सब वारणारे ॥ टेर ।। सत्य से सर्प हो पुष्प की माला| अग्नि मिट जल हो ततकाला। विप अमृत हो जाय, सत्य को धारणारे ॥ १ ॥ सत्य है स्वर्ग मोक्ष को दाता । सत्याग्रही का सुर गुण गाता । पुष्प वृष्टि करे देव, सत्य जय कारणारे