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जैन सुबोध गुटका।
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हटा निर्लज्ज बने । मक्खिये भिनक मुंह पर करें,शराव के परताप से ॥ ॥ जेवर को लेवे खोल लुच्चे,ले जेब से पैसे निकाल । कुत्ते देवें मृत मुंह पर, शरावके परतापसे ॥५॥ इन्साफ ही करते अदल जो, हजारोंकी रक्षा करे । खुदकी रक्षा नहीं बने, शरावके परतापसे ॥६॥ कम उमर में मर गए, कई राज्य राजों का गया । यादवों का क्या हुश्रा इस, शरावके परतापले ॥ ७ ॥ नशे से पागल बने, पुलिस भी लेवे पकड़ । कानून से मिलती सजा, शराय के परताप से ॥ ८ ॥ पाठ
आने वह कमाव, खर्च रूपये का करे । चोरी को फिर यह करे, शराब के परताप से ॥ ६ ॥ जैन वैष्णव मुसलमां, अंजील में भी है मना । कई रोगी बन गए, शराब के परताप से ॥ १० ॥ चौथमल कहे छोड़दे तू, मानले प्यारे अजीज़ । माराम कोई पाता नहीं, शराव के परताप से ॥ ११ ॥
१११ संसार से विरक्त.
(तर्ज-बनजारा) अब लगा स्नलक मोर वारा, गुरु हृदये शान उतारा टेर। सच २ मुनिवर की वाणी, श्रद्धा प्रतीत रुचि प्राणी जी, मैं हो जाऊं अणगारा ॥ गुरु० ॥१॥ खुल रहे जिगर के नैने, अग झूठा जाना मेने जी, यह जैसा भ्रम टिपारा ॥२॥ यह मात तातरु सजन, राथी घोड़ा धन कंचन जी, सब दामनसा भलकारा ॥३॥ जो इनके बीच ललचावे, सो परभव में दुख पावेजी, पहुंचेगा नर्फ दुधारा ॥ ४॥ जहां यम मुद्र से मारे, वहां हाकोहाफ पुकारेजी, ना छुड़ाए सजन प्यारा ॥ ५॥ ये काम भोग जग सारा, भेमे जाण्या नाग सम कारा जी, मैं दूंगा इनको टारा॥६॥ मुनि बाथमल कहे धन भाग्ये, सुन शान