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जन सुबोध गुटका !
प्राण हरो ॥१॥ माता नहीं हिंसा चाहती है, जीव मार दुनियां खाती है । मत पाप करो पाप करो, हिन्दु बन्धु मत पाप करी ॥२॥ जैसे तुम भी जीना चाहो वसे परको भी अपनाओ । प्रेम करो प्रेम करा, पर जीवन पै तुम प्रेम करो ॥३॥ बलिदान जीवों का करते, तदपि अक्षय वो नहीं जीते । ध्यान धरो ध्यान धरो, कुछ शिक्षा ऊपर ध्यान करो ॥४॥ करे रक्षा वह माता पक्की, होय, हिंसा तो डायन नक्की । तुम दूर करो, दूर करो हिंसा से तबियत दूर करो ॥ ५॥ हिंसा कर नरकन में जावे, सब मजहब ऐसे जितलावे । बाहर करो, बाहर करो हिंसा को हिंद से वाहर करो ॥६॥ गुरू प्रसादे चौथमल गावे, हिंदवासियों को जितलावे । बन्द वन्द करा, अब हिंसा करना बन्द करो ॥७॥
-~SS. - नंबर ४४७
(तर्ज गुलशन में आई यहार ) दिल में रखो विश्वास, विश्वास मेरे प्यार ॥ टेर ॥ रखती है विश्वास त्रिया पतिपे, वृद्धि होती है सुत की खास २ ॥ १ ॥ वेश्या के विश्वास नहीं होने से, होती न संतान तास २ ॥२॥ कृपी विश्वास रखता है दिल में, होती है धान्य की रास २॥३॥ ऐसे ही धर्म पे विश्वास