Book Title: Jain Subodh Gutka
Author(s): Chauthmal Maharaj
Publisher: Jainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam

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Page 342
________________ (३३४) जन सुबोध गुटका । निद्रा स्वम जागृत दशा, इन तीन से भी अन्य है।जानने उसकी गति नहीं काम देता मन है । सुरता से भी परे तुं जातो सही ॥ ६ ॥ ज्ञाता से जो ज्ञेय पदार्थ दृश्य जड़ स्वरूप है । - ज्ञान मय तो है चिदानंद आत्मा अरूप है। तूं अपने स्वभाव में आता सही॥ ७॥मैं कौन हूँ मै कौन हूं। यह कहनेवाला है वही, कहे चौथमल इस बात में बिलकुल ही संशय नहीं, इस का भेद तो गुरु से-तूं पातो सही ।। ८ ॥ . नम्बर ४५२ . [तर्ज--पूर्ववत] . . . . . चतन निज स्वरुप तूं पाया नहीं, जिससे मृत्युका अंतभी श्राया नहीं ॥ टेर ॥ इंन्द्रिय संबंधी जो विषय है तू उसे. सुख मानता । पाप केई कर रहा है यह तेरी अज्ञानता । तकर पिनी मक्खन कभी खाया नहीं ॥ १॥ दुनियां के सुख तो दृष्टिसे देखके पलटायगा । सदा कायम जो रहे असली व सुख कहेलायगा । इस का क्या है मर्म तेने पाया नहीं ।। २ ॥रत पाणी में पड़ा,पाणी तो हिलता रहायगा। वहां तलक वह रत्न है तेरी नजर नहीं आयगा। इस न्याय पे ध्यान लगा तो सही ॥ ३ ॥ विषय कषाय के योगसे, तेरा मन चंचल हो रहा । कुछ भान तुझको है नहीं,नर जिंदगी को खो रहा। एक स्थान पे दिलको जमाया हीं॥४॥ मन की चंचलता सभी अभ्यास से मिटजा

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