Book Title: Jain Subodh Gutka
Author(s): Chauthmal Maharaj
Publisher: Jainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam

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Page 344
________________ (३३६) जैन सुबोध गुटका । नम्बर ४५४ . (तर्ज-पूर्ववत् ). ... ... __थोड़े जिने पे क्यों तूं गुमान करे, प्रभु नाम का क्यों ना तूं ध्यान धरे । टेर ॥ चंचल है चपला सम ये आयु तुट एकदम जायगा । फिर जुड़े हरगिज नहीं अागे वहां पछतायगा । करके पाप वृथा अघ कुंभ भरे ॥ ५॥ जुल्म कर लूटे गरीबों को, न तूं लाये दया । माल यहां रहजायगा नहीं साथ किसके ये गया । केई खाली हाथ कर कर के मरे ॥ २ ॥ ऐश और आराम में फंसके उमर खोई सवी । .. हाथ से दिना नहीं उपकार में कौड़ी कमी । नहीं करे तप-" स्या दिन गत चरे ॥३॥ स्वार्थी संसार नहीं कोई, काम · . तेरे नायगा । खान में शामिल है सभी, कर्जा तूंही चुकायगा, अब तो आयो जग तुम समझके घरे॥४॥ साल . सत्यासी में कहे यों चौथमल कान्हूर में । लूटलो तुम लाम । इस भव सिंधु रूपी पूर. में। बिना धर्म कहो नर से तराशा witingués नम्बर ४५५.. (तर्ज-याद हम करते हैं). कस मत जाणी योरे कभी पुरुषसे नार । टेर ॥वाल ब्रह्मचारिणी रही थी, बाली सुंदरी नार । सुयश फैला सुभद्रो का, खोले चंपाके द्वार ॥ १॥ गिरनार गुफामें राज . .

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