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जन सुवोध. गुटका नन्दनने । अहिंसा, धर्म को पालम में, फैला दिया त्रशला नन्दनने ॥ टेर । अग्नि कुण्ड रचात थे, वे अपराधं पशुको जलाते थे । दे उपदेश उन अनाथों को, बचा दिया त्रशला नन्दनने ॥१॥ वस्त्र रुद्र से सराहुया नहीं, शुद्ध रुद्र से होता है । हिंसा से धर्म न होय कभी, जितलाया त्रशला नन्दनने ॥ २॥ आम खाने की बाईस से, वोया पाक इसी वायस से । कहो उनको कैसे आम मिले, फरमाया त्रशला नन्दनने ॥ ३॥द्वादश अंग रची बानी, सब जीवों के हितको जानी । प्रश्न व्याकरण सूत्र विषय, बतलाया त्रशला. नन्दनने ॥४॥ अगर आराम को चाहते हो, क्यों नहीं दया अपनाते हो । कहे चौथमल यूं, श्री मुख से फरमाया . त्रशला नन्दनने ॥ ५॥ .. ::,
· Tara ३८४ वीर जन्मोत्सव
. [तर्ज-पूर्ववत् ] ' अवतार लिया जब भारत में, जिस समय या त्रशला नन्दनने । उद्योत हुआ त्रिलोक विषेलिया, जन्मश्रा त्रशला नन्दन ने ।। टेर ॥ इन्द्र इन्द्राणी पाकर के, सुमेरु गिरि लेजा करके । फिर अति आनन्द मनाया है, जब निरखी त्रशला नन्दनने ॥ १ ॥ इन्द्र के हृदय संशय श्राया, देखी प्रभुजी की लघु काया । फिर पांव अंगुष्टे मेरु को, कंपाया