Book Title: Jain Subodh Gutka
Author(s): Chauthmal Maharaj
Publisher: Jainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam

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Page 330
________________ (३२२) जैन सुबोध गुटका। सूबा, वकील, बैरिस्टर चले । फरीक सुदाई चले, हुकूमत तज हाकिम चले । इसके आगे न किसी की मजाल चले ॥४॥ पल्टन, रिसाला, तोफखाना, दारू,सिका घर चले। कहे चौथमल जौहरी जवाहिर, पेटियों में भर चले । प्रभु नाम विना जन्म खो के चले ॥५॥ नंबर ४३६ [तर्ज-पूर्ववत् । कभी होटल में जाकर के खायो मती। अपना धर्म उत्तम गमामो मती ॥ देर ।। दध और शकर के लालच सहज पीते चाह को । देखते ऋतु नहीं पीते हैं बारह मास को। अपने तन को मिट्टी में मिलाओ मती ॥शानीचता और ऊँचता का रहता नहीं,कुछ भान है। है सभी एक साव वहां पर और नहीं कुछ ज्ञान है । ऐसे स्थान पर भूल के जाओ मती ॥२॥ खाद्य पदार्थ का भी तो विचार करते हैं कहां । शराब और ब्रांडी को भी संसर्ग से पी लेंगे वहां । जाकर कान्दे के भुजिये उड़ावो.मती. ॥३.।. बनती है दो-दो पैसे में, घर चीज उम्दा हाथ से. । होटल में देते चार पैसे तो न मिले अाजाद से । फँस के फैशन में धन को गमानो मती ॥ ४. ॥ साल सित्यासी में कहे यूँ चौथमल तुम से सफा । हॉनी सिवा नहीं लाभ है,

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