Book Title: Jain Subodh Gutka
Author(s): Chauthmal Maharaj
Publisher: Jainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam

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Page 331
________________ जैन सुवोध गुटका। ( ३२३) मिलता न है कोई नफा । मेरी नसीहत को दिल से भुलाभो मती ॥ ५॥ . . नम्बर ४३७ . [तर्ज-पूर्ववत्] — , जिया गफलत की नींद में सोचे मती वृथा मनुष्य-जनम को खोवो मती ॥ टेर । पूर्व भव के पुण्य से, अाकर मिली है सम्पदा । अब न लूटे लाभ तो, यह फिर न मिलने की कदा ॥ सच्चे मुक्का तज झूठे पिरेवो मती ॥१॥ मुख मिला.प्रभु-भजन को, क्यों न भजे नादान तू | कान से प्रभु-वाणी सुन, फिर हाथ से दे दान तू ।। कभी विषयों क. वश में तू होवे मती ॥२॥ नन से कर दर्श मुनियों के, सदा तू प्रेम से । तन से करले तू तपस्या, हरगिज डिगे मत नेम से ॥ भव सिन्धु में नैया डुबोवे मती ॥६॥ मैं तुझे समझा चुका अन, मान या मत मान तू । चौथमल कहे किस लिये आया जरा पहिचान तू ॥ मिथ्या-माया को देख तू मोवे मती॥४॥ . . नम्बर ४३८ तर्ज-पूर्ववत् ] 1: 'दुनियां सपनेसी जान लोभावो मती । इसके झांसे

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