Book Title: Jain Subodh Gutka
Author(s): Chauthmal Maharaj
Publisher: Jainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam

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Page 327
________________ जैन सुबोध गुटका । ( ३११ ) हरगिज कदा || वृथा इसमें न धन को लगाया करो ॥ ४ ॥ गरम शीशा करके, यम दोजख में तुमको पायगा । साफ लिखा शास्त्र में पीछे वहां पछतायगा || दिल में खैफा खुदा का भी लाया करो || ५ | साल सित्यासी में कहे, यों चौथमल सुन लीजियो । चाहो अगर अपना भला, त्यागन इसे कर दीजियो | मेरी शिक्षा को दिल में जमाया करो | ६ ॥ नंबर ४३२ [ तर्ज- पूर्ववत् ] कभी नैनों से पाप कमाओ मता । इनके वंश में हो जन्म गमाश्रो मती || टेर || चार दिन की है जवानी. इसमें क्यों तुम वहकते । हाथ कुछ श्राता नहीं, क्यों वद निगाह से देखते | देखी सुरूपा मन को डिगाश्री मती ॥ १ ॥ नेनों के वश में होके खोता, पतंग देखो प्राण को । श्राग में पढ़ता है जाके, क्या खबर हैवान को । ऐसे आखों के वश में होजाओ मती ॥ २ ॥ किस लिये श्रांखे मिली, किस काम को करने लगे । थिएटर, तमाशा देखने में सब से ही आग भगे । पोट पापों की बांध के जाओ मती || ३ || पालो दया सब जीव की, श्राखों का यही सार है | चौथमल कहे नहीं तो फिर, यह नैत्र ही बेकार “है। भूल विषयों में तुम ललचाओ मती ॥ ४ ॥

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