Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

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Page 461
________________ २५५ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhrainsa & Hindi Manuscripts ( Puja-Patha-Vidhāna ) Closing । अरूहा सिद्धा आइरिया उवज्झाया साहु परमेट्ठी । एदे पच णमोयारा भवे भवे मम सुह दितु ॥१॥ इति न्हवणपूजा। Colophon: १८४०. न्हवणकाव्य Opening दूरावनम्रसुरनाथकिरीट कोटि सलग्लरलकिरणच्छविधू सराघ्रि ॥॥ प्रस्वेदतापमलमुक्तमपिप्रकृष्ट भक्त्या जल जिनपते वहुधाभि सिंचेत् ॥१॥ य पाडुक • -- • ल त्वदीय बिबम् ।। इति विव स्थापण मत्र । Closing Colophon ! १८४१ निर्वाण-पूजा जयमाला Opening : Closing कमलणवेप्पिणु हिये धरेप्पिणु वाएसरेगुणगणहरह । णिव्वाणई ठाणइ तित्थसमाणइ पयडमि भत्ति जिनेस ह ॥१॥ इय सित्यकर तित्थइ पुण्णवित्तइ पठइ वियाणइ विमलयरे । तह पावपणासइ दुरिय विणासइ मगल सयल पहु तिधरे ।।१७॥ इति निर्वाण पूजा की प्राकृत आरती सपूर्णम् । Colophon: १८४२. निर्वाण-पूजा Opening : अपवित्रपवित्रो वा सर्वावस्थागतोपि वा। य स्मरेत्परमात्मानं स वाह्याभ्यन्तरे शुचि ।।५।। Closing देखें, ऋ० १८४१ ।

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