Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

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Page 492
________________ २८६ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah Colophon। इति श्री सम्नेदसिखर जी सिद्धक्षेत्र पूजा समाप्तम् । १९४१. सम्मेदशिखर-पूजा Opening : Closing : अमल गग सुवारिणा भरि झारिणा सुखकारिणा , भवतापनिवारिणा मलहारिणा कर्मवारिणा, । सम्मेदाचलपर्वत अपवर्गत सुखअपितम्, वीसतीर्थसुपूजित भववाजिन मुक्तिसजितम् ।। यः यात्राकरि भावसुद्धमनसा ते रवर्गमुक्तिप्रदा ते नारकतिर्य चगतिविमुखा सद्भावनाभावत । तेषा पुत्रकलत्रमित्रभवता सल्लक्ष्मी लीलाकरा सत्समेदगिरिसु धर्ममत कुर्वन्तु वो मगलम् ॥ इति श्री सम्मेद जी की पूजा सलाप्ताः । Colophon : १६४२. समुच्चय चौवीसी पूजा Opening Closing . Colophon रिषभ अजित " • पूजत सुरराय ॥ मुक्ति मुक्ति दातार - सिव लहे ॥ इति श्री समुच्चय पूजा सपूर्णम् । १९४३. गातिनाथ-पूजा Opening शाति जिनेश्वर नमू तीर्थ वसु दुगुनही । पचमच की अनता दुविधि षटगुनीही ॥ तृणवत् रिधि सब छारि धरि तप मिववरी। आह्वानन विधि करू' वार त्रय उच्चरी ॥ प्रभु के चैय प्रमाण सुरतन धरि मेवा करत मोहयो । देवी वृद जिनवर को जनम कल्याणक गायो । Closing

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