Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

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Page 491
________________ २०५ Catalogue of Sanskrit Prakrit Apabhramsa & Hindi Manusciipts ( Puja-Patha-Vidhana) Closing । । नेमीनाथ श्री अरहनाथ श्री मल्लाना के पूजे पाये, श्रीयसनाथ श्री सुविधपद्म श्री मुनिसुव्रत को निचे जाये । श्रीचन्द्रप्रभु कोस एक पर लौट फेर मुनसोबत आये। शीतल अनत सभव अभिनदन चित्त भाये वदो सुख पाये । Colophon: इति कवित्त सपूर्णम् । मती भादो, वदी ५, वारगुरु सम्बत् १९२६ । देखे, जै० सि० भ० प्र० I, क्र० ६४२ । १९३८. सम्मेदशिखरपूजा विधान Opennig. Closing प्रणम्य सर्वज्ञमनतवोद्यामाप्तप्रद सद्गुणरत्नसिद्धम् । चुर्वेत्रिशुध्या सुभ्रता हि तीर्थ सम्मेदशैलस्थ जिनेन्द्रपूजाम् ।। चतु. मुनीन्द्रिभिण्लोकमान्छदोवचोमये । ज्ञातव्या अथसख्या नृगणकै लेखकोत्तमै । ५॥ इति भट्टारफ श्री धर्मचद्र विनुच र पडित गगादास कृत सम्मेदाचलपूजा समाप्तम् । Colophon! १९३६. सम्मेदशिखर-पूजा Oper ing • Closing : Colophon: पत्र परमगुरु - मिखरसम्मेद ' .. इति सर्व या सपूर्णम् । सारदा सीम ।।१॥ . भानिये ॥ १९४०. सम्मेदशिखर-पूजा Opering । Closing ! देखे ऋ० १९३७ । तुच्छ बुद्ध मोरी सही पडीत करी विचार । भूल चूक अब होई जहा लीजो चतुर सुधार ॥६॥

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