Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara
View full book text
________________
श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली
Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Sidhhant Bhavan, Arrah
नर सुर खग कर वदनीक जे तिनको भविजन पाठ कराय ।। धन धान्यादिक सपति तिनके पुत्र पौत्र सुख होउ भलाय । चक्रिपद सुरपद खग इंद्र होय के करम नास शिवपुर सुखथाय ॥ इति श्री तीनलोक-सवधी पूजा सपूर्णम् ।
Colophon:
२००६. तीसचौवीसी पजा
२००६ "॥
Opening ।
Closing : Colophon:
सवौपडाह्वानम् मयुक्तान् ठ ठ स्थापन-निष्टितार्थान सकलसुखधामात्रिकालस्य ...... शिवकान्ति ॥ इति चौवीसी पूजा समाप्तम् ।
२०१०. तीसचौबीसी-पूजा
Opening :
Closing : Colophon:
ॐ जय जय जय णमोऽस्तु णमोऽस्तु णमोऽस्तु " सव्वसाहूण ।। जम्बूधातकपुष्करेषु ... नित्यमाप्नुते ॥ इति मनुकरविनियोगात् सवणविभावशम्र्मणाविहिता सुहितकरोभव्याना नद्यादचद्र ताराकनि इति पडित श्री भावशर्म कृत मधुकरकारित प्रिंशत चतुर्विशतिकार्चन समाप्तम् ।
२०११. उद्यापन
,
Opening :
भवाभोधिनिमग्नाना जन्तुनां तारणे क्षम । मस्थापयामि दशधा धर्मशम्र्फककारणम् ॥ श्रीनामी जिनीदो परमानदो परमसुखकरकारम् । भवसागरपार दुरघनिवार परम ... • सुखकारम् ।।
Closing .
Colophon
इति ।

Page Navigation
1 ... 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519