Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

View full book text
Previous | Next

Page 511
________________ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhranta & Tindi Manuscripts ( Puja - Patha-Vidhana ) Closing : Colophon Opening : Closing Colophon Opening Closing Colophon : Opening : Closin श्यामन यक्ष नमचं अचं पूजे जो प्राणी । तनमन कर बालाद प्रगति रुचि हृदि हरपानि ॥ ते जन धन नौमान्य अष्टगत पद मिलि जायें । अजितदास मन आस पूज एहि गहि सुख पावै ॥ इति श्री श्यामल-यक्ष पूजा गम्पूर्णम् । २००६. तत्वार्थ सूत्राप्टक- जयमाला उदधिक्षीरमुनीरसुनिम्मंले फलकांचनपूरितशोतले । । पनपावनीतपूजन. जिनजूह जिनसूत्रमह भजे ||१|| इति जिनमतसूत्रे मोक्षमार्गस्य मानुः ॥ इति तत्पापं त्राटक जयमालसहित समाप्ता । २००७. तेरहद्वीप - पूजा **** श्री अरिहंत प्रमाण करि पच परमगुरु ध्याइ । तिनके गुन वरनम करों, गन वच तीस नयाइ ॥ ३०५ अचल र पश्चिम सुपफार कुमुद देश वर्क्स निरधार । जिन मंदिर तहाँ पूजी जार. रूपाचल पर अरघ चढ़ाई || अनुपलब्ध । २००८. तीनलोक सवधी - पूजा यह विधि ठाडो होय के प्रथम पर्द जो पाठ । धन्य जिनेश्वर देव तुम नार्स फर्म जु आठ || निह जग भीतर श्रीनि मंदिर बने अकित्तम महामुखदाय ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519