Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

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Page 506
________________ ३०० श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah. १९८८. शीतलनाथ पूजा Opening . सीतल जगपद नमू धर्मदसधा इम भाष्यो, उत्तमषिमा सु आदि अत द्रह मचर्य सन्ध्यायौ । सुनि प्रतिबोध हूयो भवि मोक्ष मारग कौं लागै, आह वानन विधि करुचलण जुग करि अनुराग ॥१॥ Closing : पूर्वाषाढ़ नक्षत्र माघ वदि द्वादशी,' जनमैं श्री जिननाथ निवोगे सब हमी। Colophon • अनुपलब्ध । विशेष- इसके बाद अनन्तनाथ, पार्श्वनाथपूजा, शान्तिनाथ पूजा तथा पद्मावती पूजा अधूरी-अधूरी लिखी गई है। १९८६. स्नानपूजा-विधि Opening ! Closing : Colophone प्रथम हुँ निस्सही पूर्वक देह र जी आवी अग, सुद्ध करी नवा वस्त्र पहरी स्वभाल तिलक करिन देवचन्द्र जिन पूजता करता भवपार । जिन प्रतिमा जिन सारषी कही सूत्र मझार ।। इति स्नानपूजा विधि सपूर्णम् । १९६०. सोलहकारण-पूजा एन्द्र पद प्राप्य पर प्रमोद धन्यात्मनामान्मनिमन्यमान । दृक्-शुद्धिमुख्यादि जिनेन्द्रलक्ष्मी महामोह पोडशकारणानि ॥ भक्ति प्रदा सुरेन्द्रमस्तुतमिद तीर्थकराणा पदम्, लव्धुवाछति योनि (पि) वा चतुर ससारभीताशय ।। श्रीमद्दर्शनशुद्धिभूरिविनय ज्ञान तदा तत्फलम् । भवत्या षोडशकारणानि सततं संपूज्य वाराधयेत् ।। नही है । Opening : Closing : Colophon .

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