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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली
Shri Devakumar Jain Oriental library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah
Colophon।
इति श्री सम्नेदसिखर जी सिद्धक्षेत्र पूजा समाप्तम् ।
१९४१. सम्मेदशिखर-पूजा
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Closing :
अमल गग सुवारिणा भरि झारिणा सुखकारिणा , भवतापनिवारिणा मलहारिणा कर्मवारिणा, । सम्मेदाचलपर्वत अपवर्गत सुखअपितम्, वीसतीर्थसुपूजित भववाजिन मुक्तिसजितम् ।। यः यात्राकरि भावसुद्धमनसा ते रवर्गमुक्तिप्रदा ते नारकतिर्य चगतिविमुखा सद्भावनाभावत । तेषा पुत्रकलत्रमित्रभवता सल्लक्ष्मी लीलाकरा सत्समेदगिरिसु धर्ममत कुर्वन्तु वो मगलम् ॥ इति श्री सम्मेद जी की पूजा सलाप्ताः ।
Colophon :
१६४२. समुच्चय चौवीसी पूजा
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रिषभ अजित " • पूजत सुरराय ॥ मुक्ति मुक्ति दातार - सिव लहे ॥ इति श्री समुच्चय पूजा सपूर्णम् ।
१९४३. गातिनाथ-पूजा
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शाति जिनेश्वर नमू तीर्थ वसु दुगुनही । पचमच की अनता दुविधि षटगुनीही ॥ तृणवत् रिधि सब छारि धरि तप मिववरी। आह्वानन विधि करू' वार त्रय उच्चरी ॥ प्रभु के चैय प्रमाण सुरतन धरि मेवा करत मोहयो । देवी वृद जिनवर को जनम कल्याणक गायो ।
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