Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

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Page 485
________________ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apibhramsa & Hindi Manuscripts ( Pūjā Pitha Vidhāra) जिन विमलमूत्तिसुरेद्रव द्य Closing : Colophon. Opening Closing Colophon. Openign Closing Colophon. तस्या इति रविव्रत पूजा सम्पूर्णम् । १६१६. रविव्रत-पूजा इति रविव्रत पूजा सुरपति पद दूजा जे करत नव व्रत सही । मन वचकाय धावही मो सुरपद पावही पार्श्वनाथ फल देत सही ||१२|| देखे, क्र० १ε१८ । वाकी वशभूषननृपो श्रीअश्वसेनोनुज, चामान दनइन्द्रचद्रधरनी ससेव्यमान सदा । प्रत्याहाय विभूषित वसुबुधि कल्याणकारी सदा, सेतुभ्य विधातु वाछितफल श्री नवकल्पद्रुम ||१२|| इति रविव्रत पूजा | १९२०. ऋषिमडल- पूजा २७६ .. त्रैलोक्यनाथ जिन पार्श्व पर नमामि ॥ Opening : देखें, ऋ० १६२० । प्रणम्य श्री जिनाधीश श्रीमच्चारुचरित्र नीगुणादिर्मुनिः ॥ इति ऋपिमंडल पूजा समाप्ता । णतत्रयाशीभिः श्लोकै प्रथाग्रथ । ३८० । सवत् १८१८ कार्तिक शुक्ले १४ बुद्ध े लि० पडित श्री हेमराजेन हुकुमचंद गहोई श्रावकस्य पठनार्थम् । १९२१ ऋषिमडल पूजा - चक्षे पृजादिमल्पश ||

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