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Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhrainsa & Hindi Manuscripts
( Puja-Patha-Vidhāna )
Closing ।
अरूहा सिद्धा आइरिया उवज्झाया साहु परमेट्ठी । एदे पच णमोयारा भवे भवे मम सुह दितु ॥१॥ इति न्हवणपूजा।
Colophon:
१८४०. न्हवणकाव्य
Opening
दूरावनम्रसुरनाथकिरीट कोटि सलग्लरलकिरणच्छविधू
सराघ्रि ॥॥ प्रस्वेदतापमलमुक्तमपिप्रकृष्ट भक्त्या जल जिनपते वहुधाभि
सिंचेत् ॥१॥ य पाडुक • -- • ल त्वदीय बिबम् ।। इति विव स्थापण मत्र ।
Closing Colophon !
१८४१ निर्वाण-पूजा जयमाला
Opening :
Closing
कमलणवेप्पिणु हिये धरेप्पिणु वाएसरेगुणगणहरह । णिव्वाणई ठाणइ तित्थसमाणइ पयडमि भत्ति जिनेस ह ॥१॥ इय सित्यकर तित्थइ पुण्णवित्तइ पठइ वियाणइ विमलयरे । तह पावपणासइ दुरिय विणासइ मगल सयल पहु तिधरे ।।१७॥ इति निर्वाण पूजा की प्राकृत आरती सपूर्णम् ।
Colophon:
१८४२. निर्वाण-पूजा
Opening :
अपवित्रपवित्रो वा सर्वावस्थागतोपि वा। य स्मरेत्परमात्मानं स वाह्याभ्यन्तरे शुचि ।।५।।
Closing
देखें, ऋ० १८४१ ।