Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara
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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली
Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah.
Closing :
स्वस्तिभद्र चास्तु ३ न स्वी क्ष्वी हम स्वस्ति स्वस्ति स्वस्ति भवतु मे स्वाहा। इति पुण्याहवाचन ।
Colophon :
१६०६. पुष्पाजलि पूजा
Opening :
Closing ।
वीरदेव को प्रनमि करि अर्चा करी त्रिकाल । पुष्पाजलिव्रत कथा को सुनौ भविक अघटाल । १॥ घाति कर्म निरमूलन करो निर्वानपद तव अनुसर । जा विधि व्रत प्रभाव तित लहयौ, ललितकीति कवि इस विधि
वही ॥ पुप्पाज लिनत कथा समाप्तम् ।
Colophone
१६०६. रत्नत्रयपूजा
Opening :
Closing i
चिदगतिफणविप हरन मन, दुख पावक जलधार । शिवसुख सुधा सरोवरो सम्यक त्रयी निहार ।। एक सरूप प्रकाश निज वचन कह्यो न जाय । तीन भेद व्यौहार सब द्यानत को सुखदाय ।। इति रन्नत्रयपूजा सम्पूर्णम् ।
Colophon:
१९१०. रत्तत्रयपूजा
Opening :
Closing : Colophon: विशेष
पचभेद जाकै प्रगट गेय प्रकासन भान । मौह तपन हर चद्रमा, मोई सम्यक ज्ञान । देखे, ऋ० १९०६ । इति रत्नत्रय पूजा। इसी से ग्यानपूजा, समुच्चय आरती भी अन्तर्भूत है।

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