Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara
View full book text
________________
२६४
श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली
Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah.
१८६६. पचकल्याणक-पूजा
Opening : Closing :
देखे, ऋ० १८६८। अनेकतर्कमकर्षहतितवुद्योत्तमा । स्वद्धिनी च वयस्फूर्तिजीवात् श्री प्रतिवद्धनम् ॥ इति श्री पचकल्याणक पूजा जी सम्पूर्णम् । लाला सकरलाल रतनचद के माथे को पुस्तक ।
देखे, ज०सि० भ० ग्र० I, ०६०२।
Colophon
१८७०. पंचकल्याणक-दोहा
Opening :
Closing :
कल्याणक नायकनमू , कलपकुख्ह कुलकद । कल्मष दुर कल्याणकर, वुधकुलकमलदिनद ॥१॥ तीन तीन वसु चद ये सवत्सर के अक । जेष्ट शुक्ल दशमी दिवस पूरन पढठो निसक । इति पचकल्याणक के सागीत कवित सम्पूर्णम् ।
Colophon;
१८७१ पचकल्याणक-पूजा
Opening ,
Closing !
परमब्रहमेभ्यस्तेभ्यो नमो निर्वाणमिद्धये । येषा नामान्यनतानि कातिभिरपि सस्तुवे ॥१॥ देह दीप्तप्रकारी सुताप्तसुकरी चक्रेन्द्रसपत्करी जन्मादिसुतरी। गुणाकरकरी स्वमोक्षधाम्नीकरी . रोगाद्यनासकरी ॥ इति श्री चतुर्विशतितीर्थङ्कर पूजा पचकल्याणक समाप्तम् ।
Colophon
१८७२. पचकल्याणक-पूजा
Opening :
पच परमगुरु वदि करि पचकुमार मनाय । मदन ब्याधि मेरी हरो जगत करो सुखदाय ।।

Page Navigation
1 ... 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519