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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली
Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah.
१८६६. पचकल्याणक-पूजा
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देखे, ऋ० १८६८। अनेकतर्कमकर्षहतितवुद्योत्तमा । स्वद्धिनी च वयस्फूर्तिजीवात् श्री प्रतिवद्धनम् ॥ इति श्री पचकल्याणक पूजा जी सम्पूर्णम् । लाला सकरलाल रतनचद के माथे को पुस्तक ।
देखे, ज०सि० भ० ग्र० I, ०६०२।
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१८७०. पंचकल्याणक-दोहा
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कल्याणक नायकनमू , कलपकुख्ह कुलकद । कल्मष दुर कल्याणकर, वुधकुलकमलदिनद ॥१॥ तीन तीन वसु चद ये सवत्सर के अक । जेष्ट शुक्ल दशमी दिवस पूरन पढठो निसक । इति पचकल्याणक के सागीत कवित सम्पूर्णम् ।
Colophon;
१८७१ पचकल्याणक-पूजा
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परमब्रहमेभ्यस्तेभ्यो नमो निर्वाणमिद्धये । येषा नामान्यनतानि कातिभिरपि सस्तुवे ॥१॥ देह दीप्तप्रकारी सुताप्तसुकरी चक्रेन्द्रसपत्करी जन्मादिसुतरी। गुणाकरकरी स्वमोक्षधाम्नीकरी . रोगाद्यनासकरी ॥ इति श्री चतुर्विशतितीर्थङ्कर पूजा पचकल्याणक समाप्तम् ।
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१८७२. पचकल्याणक-पूजा
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पच परमगुरु वदि करि पचकुमार मनाय । मदन ब्याधि मेरी हरो जगत करो सुखदाय ।।