Book Title: Jain Siddhant Bhaskar
Author(s): Hiralal Jain, Others
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 4
________________ जैन-सिद्धान्त-भास्कर के नियम। १ 'जैन-सिद्धान्त-मास्कर' हिन्दी त्रैमासिक पत्र है, जो वर्ष में जून, सितम्बर, दिसम्बर और मार्च में चार भागों में प्रकाशित होता है। २ 'जैन-एन्टीक्वेरी' के साथ इसका वार्षिक मूल्य देशके लिये ४) रुपये और विदेश के लिये डाक-व्यय लेकर ४) है, जो पेशगी लिया जाता है। १) पहले भेज कर ही नमूने की कापी मंगाने में सुविधा होगी। ३ केवल साहित्यसंबन्धी या अन्य भद्र विज्ञापन ही. प्रकाशनार्थ स्वीकृत होंगे। मैनेजर, 'जन-सिद्धान्त-मास्कर' आरा को पत्र भेजकर दर का ठीक पता लगा सकते हैं मनीआर्डर के रुपये भी उन्हीं के पास भेजने होंगे। ४ पते में हेर-फेर की सूचना भी तुरन्त उन्हीं को देनी चाहिये।। ५ प्रकाशित होने की तारीख से दो सप्ताह के भीतर यदि 'भास्कर' नहीं प्राप्त हो, तो इसकी सूचना जल्द आफिस को देनी चाहिये। ६ इस पत्र मे अत्यन्त प्राचीनकाल से लेकर आधुनिक काल तक के जैन इतिहास, भूगोल, शिल्प, पुरातत्त्व, मूर्ति-विज्ञान, शिला-लेख, मुद्रा-विज्ञान, धर्म, साहित्य, दर्शन, प्रभृति से संबंध रखने वाले विषयों का ही समावेश रहेगा। ७ लेस, टिप्पणी, समालोचना-यह सभी सुन्दर और स्पष्ट लिपि में लिखकर सम्पादक 'जैन-सिद्धान्त-भास्कर' आरा के पते से आने चाहिये । परिवर्तन के पत्र भी इस पते से आने चाहिये। ८ किसी लेख, टिप्पणी आदि को पूर्णतः अथवा अंशतः स्त्रीकृत अथवा अस्वीकृत करने का अधिकार सम्पादकमण्डल को होगा। ९ स्वीकृत लेख लेखकों के पास विना डाक-व्यय भेजे नहीं लौटाये जाते। १० समालोचनार्थ प्रत्येक पुस्तक की दो प्रतियाँ 'भास्कर ओफिस, आरा के पते । भंजनी चाहिये। एएम पत्र के मम्पादक निम्न-लिखित सजन हैं जो अवैतनिक रूप से केवल जैन-धर्म । उन्नति और उत्थान के अभिप्राय से कार्य करते हैं : प्रोफेसर हीरालाल, एम.ए, एल एल बी. प्रोफेसर ए. एन. उपाध्ये, एम. ए, डी. लिट्. वायू कामता प्रमाद, एम आर ए.एस. पगिढन के भुजबली शास्त्री, विद्याभूपण

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