Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 12
________________ जैन-शिलालेख संग्रह [११] ......मडे च पुव-राजनिवेसित-पीथुडग-दल]भ-नगले नेकासयति जनपदभावन च तेरस-वस-सत-केतुभद-तित' मरदेहसंघात[]] वारसमे च बसे.... ..."सेहि वितासयति उतरापथराजानो [१२] . ....... मगधान च विपुल भयं जनेतो हथिसु गंगाय पाययति] मागध च राजान वहसतिमित' पादे वदापति[]] नंदराजनीत च कालिंग-जिन-संनिवेसं......... "गहरतनान पडिहारेहि अंगमागध-बसु च नेयाति [] [१३] . त जठर-लिखिल-बरानि सिहिरानि नीवेसयति सत-विसिकन परिहारेन[] अभुतमछरिय च हथि-नावन परीपुर उ [प-]देणह हयहथी-रतना-मानिक पंडराजा एदानि अनेकानि मुतमणिरतनानि अहरापयति इध सत-सि] [] [१४] ....."सिनो वसीकरोति [0] तेरसमे च वसे सुपवत-विजयिचके कुमारीपवते अरहिते य[] प-खिम-व्यसताहि काय्यनिसीदीयाय यापभावकेहि राजभितिनि चिनवतानि बोसासितानि [I] पूजानि कत-उवासा खारवेल-सिरिना जीवदेव-सिरि-कल्प राखिता [1] [१५] .. • ..''[ ता] सु कत समण-सुविहितान (नु ?) च सातदिसान (नु ?) जातान तपसइसिन सघायन (नु १) [] अरहतनिसीदिया समीपे पभारे वराकर-समुथापिताहि अनेक योजनाहिताहि . . " सिलाहि सिंहपथ-रात्रिय धुसिय निसयानि [१६] ... पटालिकोचतरे च वेडूरियगमे थंभे पतिठापयति [] पानतरिया सतसहसेहि []] मुरिय-काल वोछिन ( ने १) च चोयठि १ वहसतिमित्र इति । २ रानिस वा इति हरनन्दनपाण्डेया.।

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