Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 11
________________ हाथीगुफाका लेख [५] गधव-वेदबुधो ढत-नत-गीत-वादितसदसनाहि उसव-समाजकारापनाहि च कीडापयति नगरिं [0] तया चवुथे वसे विजाधराधिवास अहत-पुत्र कलिंगपुवराजनिवेसित........"वितध-मकूटे सविलमढिते च निखित-छन [६] भिंगारे हित-रतन-सापतेये सव-रठिक भोजके पाढे वदापयति [0] पचमे च दानी वसे नंदराज ति-वससत-ओघाटित तनसुलियवाटा पनाडिं नगर पवेस[ यति [0] सो [पि च वसे] छडम 'भिसितो च राजसुय [] सन्दसयतो सबकर-वण [७] अनुगह-अनेकानि सतसहसानि विसजति पोर जानपद [] सतम च वसं पसासतो वजिरघरवि धुसि ति घरिनी समतुक-पद-पुनासकुमार[]............ [0] अठमे च वसे महतिसेनाय मह[तभित्ति] गोर धगिरि [८] घातापयिता राजगहं उपपीडापयति[]] एतिना च कम पदान-पनादेन सवितसेन-वाहिनी विपमुचितु मधुरा अपयातो येव नरिदो [नाम]......... [मो] यछति [विछ] ........"पलवभरे [९] कल्परुखे हय-गज-रध-सह-यते सव-घरावास-परिवसने स अगिणठिये[] सवगहन च कारयितु वम्हणान जाति-पतिं परिहार ददाति[]] अरहत....... ...व " .. .न........."गिय [१०]..."[क] [f] मानेहि रा[ज] संनिवासं महाविजय पासाद कारापयति अठतिसाय सत-सहसेहि[]] दसमे च वसे महघीत' मिसनयो भरधवस-पथान महिजयन ति कारापयति"" ....." [निरितय उया तान च मणि-रतना[नि] उपलभते ।

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