Book Title: Jain Shastra sammat Drushtikon
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 20
________________ तेरापन्थके दार्शनिक विचारोंकी पृष्ठभूमि जैन-धर्मका एकमात्र उद्देश्य आत्म-विशुद्धि या मोक्ष है । जैन- दर्शनमें सिर्फ इसीका विचार कियागया है । लौकिक जीवनकी सुख-सुविधा पर जैन-दर्शन या मोक्ष - शास्त्र कोई विचार नहीं करता । उसकी दृष्टिमें यह समाज - शास्त्रका विपय है । प्रत्येक शास्त्र' की अपनी-अपनी सीमा होती है। एक कोटिका शास्त्र सब क्षेत्रों में सफल नहीं बन सकता । समाजके लिए हिंसा आवश्यक या अनिवार्य होती है । मोक्षका साधन है एकमात्र अहिंसा । इसलिए मोक्ष - शास्त्र १ - सम्यग्दर्शनादीनि मोक्षस्यैव साध्यस्य साधनानि नान्यस्यार्थस्य, मोक्षश्च तेषामेव साधनाना साव्यो नान्येषामिति । " भगवती वृत्ति १ । १ [ सम्यग् दर्शन आदि मोक्षरूप साध्यके ही साधन है, अन्यके नही, और मोक्ष उन्ही साघनोका साध्य है, औरोका नही । ]

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