Book Title: Jain Shastra sammat Drushtikon
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 25
________________ आचार्य भिक्षुके विचारोंकी आध्यात्मिक पृष्ठभूमि तेरापन्थकी अपनी मान्यता यह है२-अहिंसा-प्राणीमात्रके प्रति जो संयम है, वह अहिसा' है। उसके दो रूप हैं-विधि और निपेध । संवर या संयम, अप्रवृत्ति या निवृत्ति निपेधात्मक अहिंसा है। निर्जरा या शुभ योगकी प्रवृत्ति या राग-द्वीप-मोह-रहित प्रवृत्ति या संयमयुक्त प्रवृत्ति, विधिरूप अहिंसा है। २-स्थानागसूत्र' मे संयमकी परिभापा बतातेहुए लिखा १--अहिंमा निउणा दिट्ठा, सन्वभूएसु सजमो । -दगर्वकालिक ६।९ २-बेइदियाण जीवा असमारंभमाणस्स चउविहे सजमे कज्जइ, तजहा–जिन्भामयाओ सोक्खाओ अववरोवेत्ता भवइ, जिस्भा,, मयेण दुक्खेण अमजोगेत्ता भवइ, फासामयाओ सोक्खाओ अववरोवेत्ता भवइ, फासामयामो दुक्खाओ असंजोगेत्ता भवइ । -स्थानाग ४।४

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