Book Title: Jain Shastra sammat Drushtikon
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 30
________________ [ २४ ] या किसीकी भी हो । (२) असंयममय सेवा संसारका मार्ग है। मोक्षके लिए मोक्ष मार्गकी सेवा आवश्यक होती है, संसारके लिए संसार-मार्गकी, दोनोंक साधक के लिए दोनोंके मार्गकी | १६- तेरापन्थी साधुओके सिवाय संसारके सभी प्राणी कुपात्र है तेरापंथकी ऐसी मान्यता नहीं है । कोई व्यक्ति सभी दृष्टियोसे सुपात्र या कुपात्र नहीं होता । सुपात्र या कुपात्र भिन्न-भिन्न अपेक्षासे होते है । एक गरीब और दीन व्यक्ति अनुकम्पा दानका पात्र है किन्तु मोक्ष-दानका पात्र नहीं है। और इसलिए नहीं है कि वह असंयमी है, अत्रती है, अत्यागी है। मोक्षार्थ दान का अधिकारी एकमात्र संयमी ही है - महाव्रती ही है । तेरापंथका सिद्धान्त यह है कि असंयमी मोक्षार्थ दानकी अपेक्षा कुपात्र है यानी उस दानका वह अधिकारी नहीं, योग्य नहीं । यहा 'कुपात्र' का अर्थ असंयमी है, दुराचारी नहीं । अनुकम्पायोग्य व्यक्तिका सहयोग करना और दुराचारी का सहयोग करना, एक कोटिके है—यह तेरापंथका सिद्धान्त नहीं है। अनुकम्पायोग्य व्यक्तिका सहयोग करना समाज-सम्मत है और दुराचारीका सहयोग करना समाज सम्मत भी नहीं है । १७ - लौकिक दया, दान, उपकार और सेवा करनेकी

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