Book Title: Jain Shastra sammat Drushtikon
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 42
________________ [ २६ ] पन्यास मुनिश्री कल्याणविजयगणी "महावीरका खास लक्ष्य स्वयं अहिंसक वनकर दूसरोको अहिंसक वनानेका था, तव बुद्धकी विचार-सरणि दुःखितोके दुखोद्धारकी तरफ झकीहुई थी। ऊपर-ऊपर से दोनोंका लक्ष्य एकसा प्रतीत होता था परन्तु वास्तवमे दोनोंके मार्गमे गहरा अन्तर था। महावीर दृश्यादृश्य दुखकी जडको उखाड डालना मुख्य कर्तव्य समझते थे और बुद्ध दृश्य दु.खोंको दूर करना । पहिले निदानको दूर कर सदाके लिए रोगसे छुट्टि पानेका मार्ग बतलानेवाले वैद्य थे, तब दूसरे उदीर्ण रोगकी शान्ति करनेवाले डाकर।" -भगवान महावीर और बुद्ध मश्रुवाला “वुराईसे रहित और भलाईके अंशसे युक्त न्याय्य स्वार्थवृत्ति व्यवहार्य अहिंसा है। यह आदर्श या शुद्ध अहिंसा नहीं। " विजय रामचन्द्रसूरि "जिस दिनसे उन्होंने छव कायके जीवोंकी हिंसा न करने की प्रतिज्ञा ली तवसे वे अभयदानी वने-सव जीवोंको आत्मनुल्य समझ उन्हें भयभीत करनेसे निवृत्त बने ।” [जे दिवस थी तेओ छकाय जीवनी हिंसा नहि करवाना पचक्खाण करया त्यारथी तेओ अभयदागी थया एटले वधा

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