Book Title: Jain Shastra sammat Drushtikon
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 47
________________ [ ३१ ] पणीय अशन-पान-खाद्य-स्वाध दे, उससे पाप-कर्म बंधता है, निर्जरा नहीं होती। ___ यह मोक्ष-दृष्टि है। जनताको उभाड़नेके लिए इसको सामाजिक स्तरपर लाकर इस रूपमे रखाजाता है-तेरापंथी कहते है कि दीन-हीन मनुष्योंकी रोटी-पानीसे सहायता करना पापहै । मोक्षार्थ-दानका अधिकारी संयमी ही है। संयमीके सिवाय शेष प्राणी यानी असंयमी मोक्षार्थ दानके पात्र-अधिकारी नहीं है। जनताको उभाड़नेके लिए इसे यह रूप दियाजाता है कि तेरापंथी साधु अपने सिवाय सभी प्राणियोको कुपात्र कहते है, श्रावकको कुपात्र कहते है, माता-पिताको कुपात्र कहते है। असंयमी जीवनकी इच्छा करना, उसका पालन-पोषण करना, उसे टिकाये रखनेका प्रयत्न करना रागकी वृत्ति है। जनताको उभाडनेके लिए इसे बड़े करुणापूर्ण ध्यान्तोंके रूपमे रखाजाता है तेरापंथी कहते हैं कि मोटरकी झपटमे आतेहुए अथवा ऊपरसे गिरतेहुए बच्चेको बचाना पाप है। १-समणोवासगस्स ण भते । तहारूव समण वा माहण वा फासु एसणिज्जेण असण-पाण-खाइम-साइमेण पडिला माणस्स किं कज्जति [30] गोयमा । एगतसो निज्जरा कज्जइ, नत्यि य मे पावे कम्मे कज्जति । -~-भगवती ८

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