Book Title: Jain Shastra sammat Drushtikon
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 44
________________ [ २८ ] नाम जीव- दया छे, अन जीवन जीवपणे न ओलसता विकारी मानवो अने शरीरवालो मानवो तेनज नाम जीवहमा छे जीव कोन कहेवाय ते तन' खबर छे ? जीव तो पोनाना ज्ञान, दर्शन, आनन्द आदि अनन्त गुणानो पिण्ड छे हरेक जीव. पोताना गुणथी पूरो छे पर जीवो पोता पोताने स्वभावन' ओलखीन पर्याय मा शुद्धता प्रकट करे तो तेमनी दया थाय मारु तेमा काई चाले नहि - - आम जाणीन ज्ञानीओ पोताना आत्मान विकारथी बचावे छे एज जीवदया छे ] आत्मधर्म वर्ष ४, प्रथम श्रावण २४७३ श्री हरिभाऊ उपाध्याय— " गाधीजीने जब-जब उपवास किये है, तभी लोगोंको उनके प्राणोंकी अधिक चिन्ता हुई। यह स्वाभाविक जैसा तो है पर इसमे छिपे हमारे मोहको हमें समझलेना चाहिए, नहीं तो 'उपवास आदिका मर्म हम ठीक-ठीक न समझ पायेंगे ।"

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