Book Title: Jain Shastra sammat Drushtikon
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 35
________________ [ १६ ] सारय-दर्शन___ "जो मोक्षका साधन नहीं है, लेकिन धर्ममें गिनकर साधन वर्णन करदिया तो उसका जो विचार है, वह केवल वन्धनका ही कारण होगा न कि मोक्ष का।" [ असायनान चिन्तन बन्धाय भरतवत् ] -अध्याय ४, सूत्र ७ पातजल-योग-भाष्य "सर्व प्रकारसे सर्व कालोंमे सर्व प्राणियोंके साथ अभिद्रोह न करना उनका नाम अहिंसा है।" [नत्र अहिमा सर्वदा सर्वभूतेषु अनभिद्रोह । ] दिगम्बर-आचार्य अमितगति "जो असंयतात्माको दान देकर पुण्यरूप फलकी आकांक्षा करता है, वह जलती आगमे वीज फेंक, धान पैदा करना चाहता है।" [वितीर्य यो दानममयतात्मने, जन फल काक्षति पुण्यलक्षणम् । वितीर्य वीज ज्वलिते स पावके, समीहते शस्यमपास्तदूषणम्"]] -अमितगति श्रावकाचार ११ वा परिच्छेद

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