Book Title: Jain Shastra sammat Drushtikon
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 24
________________ [ ८ ] उन्होंने जिन दो भिन्न दृष्टिकोणोंसे लौकिक कर्तव्योका मूल्याङ्कन किया, उन्हीं दृष्टिकोणोसे अगर उन्हें आकाजाय नो कोई दुविधा नहीं आती। दुविधा तब आती है, जब उनकोलौकिक कर्तव्योको और आचार्य भिक्षु द्वारा उनके लिए दिये गये शब्द-प्रयोगोंको एक ही दृष्टिसे आकाजाता है। ___ इस दृष्टि-भेदको ध्यानमे रखकर आप तेरापन्थ पर लगाये जानेवाले आरोपोकी समीक्षा कीजिए और उसके सिद्धान्तों पर गम्भीरतासे मनन कीजिए।

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