Book Title: Jain Shastra sammat Drushtikon
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 23
________________ शब्द - प्रयोगकी भिन्न-भिन्न दृष्टियां आचार्य भिक्षुने समाजकी व्यवस्थाका समाज-शास्त्रकी भाषामे निरूपण किया, तब उसे सासारिक' कर्तव्य, लौकिक 'उपकार', लौकिक' अभिप्राय आदि -आदि कहा और जब उन्होंने आत्म-शुद्धिकी पद्धतिका अध्यात्मकी भाषामे निरूपण किया, तत्र उसे अधर्म, पाप, संसार आदि -आदि कहा | १ - ए ( कारुण्य) दान ससारतणो किरतब छै, तिणमें मोक्ष रो मार्ग नाहि । व्रताव्रत १६।८ २ -- कोई जीव छुडाव लाखा दाम दे, ते तो आपरो सिखायो नहि धर्म | ओ तो उपकार ससारनो, तिणसू कटता न जाणे कर्म ॥ व्रताव्रत १२।५ ३-अव्रत मे दे दातार, ते किम उतरे भवपार । छान्दो इण लोक रोए, मारग नही मोख रो ए ॥

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