Book Title: Jain Shastra sammat Drushtikon
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 27
________________ [ ११ ] समिति शुभ अर्थका व्यापार प्रवृत्ति-धर्म है और गुप्ति-अशुभ-अर्थका नियन्त्रण निवृत्ति-धर्म है। ३-अहिंसाका आधार करुणा नहीं, संयम' है। अहिंसा आत्म-धर्म या मोक्ष-मार्ग है। उसका साध्य हैमोक्ष। मोक्षका अर्थ है-चन्धनसे मुक्ति । प्राण-रक्षा उसका साध्य नहीं है। गौणरूपमे वह अपनेआप हो जाती है। ४-पारमार्थिक दया-अध्यात्म-दया और अहिंसा एक है। व्यावहारिक ठया मोक्षका मार्ग नहीं है, आत्म-साधना नहीं है किन्तु सासारिक वन्धन है। जो बन्धन है, वह मोक्षके प्रतिकूल है। पुण्य शुभ-पुद्गलोका बन्धन है-सोनेकी वेडी है और पाप अशुभ-पुद्गलोंका वन्धन है-लोहेकी वेडी है, आखिर दोनो वेडियां है । आध्यात्मिक दृष्टिका ध्येय है-मोक्ष । वह इन दोनोंके छूटनेसे मिलता है। ५-संसारके अनुकूल कार्य या प्रवृत्तिसे संसार कटता नहीं। उसे काटनेका उपाय है वीतराग-भाव और वही विशुद्ध या मोक्षके अनुकूल अहिंसा है। है-अहिंसा और दयाकी परिभाषा यह है जो प्रवृत्ति मूक्ष्म या स्थूल राग, द्वप, क्रोध, मान, माया, लोभ, १-सव्वे पाणा न हन्तव्वा -आचाराग ४११ । १२७ -

Loading...

Page Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53