Book Title: Jain Shastra sammat Drushtikon
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ [ २ ] आचार्य भिक्षु, जो श्रद्धा और तर्क दोनोको साथ लिहुए चले, वे धर्म-तत्त्वोंको भी आलोचनाके बिना कैसे स्वीकार करते ? ___ उन्होंने धर्मके मौलिक तत्त्व या मुख्य साधन-अहिंसाको कसौटी पर कसा। परिणाम यह निकला कि व्यावहारिक, लौकिक या सामाजिक दया, दान, सेवा, सहयोग, उपकार आदि-आदितत्त्व विशुद्ध अहिंसात्मक दया, दान, सेवा, सहयोग, उपकार आदिसे अलग होगये। ____ आचार्य भिक्षुके आठ वर्षके शास्त्रीय मंथन द्वारा स्थिर किये हुए विचार जनताके सामने आये, तब क्रन्ति सी मचगई । उनके मजबूत आचार, कुशल अनुशासन, व्यवस्थात्मक संगठन और जनताके वढतेहुए आकर्पणने तात्कालिक साधु-संस्थाको सहजवृत्त्या चुनौती दे डाली। अव वे विरोधके केन्द्रविन्दु वनगये। उनके विचार गहरे थे, उस समयके लिए नये थे, चालू प्रवाहके अनुकूल नहीं थे, लोक-मानसकी सूझसे बहुत दूर थे, अध्यात्मकी उच्च भूमिका पर रहेहुए थे, इसलिए विरोधकर्ताओंने उनके नवीन विचारोको ही विरोधका साधन बनाया। उनके आध्यात्मिक सिद्धान्तोंकी मौलिकताको छिपाकर उनका इस भाषामे प्रचार कियागया, -भीखणजी भगवान् महावीरको चूका कहते है । २-ये विल्लीसे चूहेको छुडानेमे पाप कहते है। ३–आगमें जलतीहुई गायोंको बचानेमें पाप कहते है। ४-छतसे गिरतेहुए अथवा दुर्घटनामे फॅसेहुए वच्चेको बचानेमे पाप कहते है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53