Book Title: Jain Shastra sammat Drushtikon
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 19
________________ [ ३ ] ५-औषधालय, विद्यालय, अनाथालय, कुआ, तालाब, __ प्याऊ आदि करानेमे पाप कहते है । -भूखे-प्यासेको रोटी-पानी देनेमे पाप कहते हैं। --माता-पिताकी सेवा करनेमे पाप कहते हैं। ८-अपने सिवाय सबको कुपात्र मानते है-आदि आदि। तेरापन्थके विरोधमे प्रचारका यह रूप आज भी चालू है । जो व्यक्ति तेरापन्थके मौलिक सिद्धान्तोकी जानकारी नहीं करते, व तेरापन्थको परिभाषा यही जानते है कि तेरापन्थी वह है, जो मरतेको बचानेमे पाप कहता है। विरोधमे सत्यका गला घोटा जाता है। विरोधी प्रचारके द्वारा कहीं भी असलियतको पकडा नहीं जा सकता, इसलिए यह आवश्यक है कि तेरापन्थका दृष्टिकोण समझनेके लिए उमीके साहित्यका अध्ययन कियाजाय ।

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