Book Title: Jain Satyaprakash 1940 03 SrNo 56
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंजाब में जैनधर्म [कितनेक ऐतिहासिक उल्लेखों का संग्रह ] लेखक-मुनिराज श्री दर्शनविजयजी (गतांक से क्रमशः) आ० अमलचन्द्रसूरि (वि० सं० १०३०)-सर एलेकझांडर कनिंगहाम लिखते हैं कि-नगरकोट-कांगडा के इन्द्रेश्वर मन्दिर के दरवाजे से बहार रक्खी हुई भ. आदिनाथ स्वामी की प्रतिमापर लेख खुदा ह कि-सं. ३० में राजकुल गच्छ के आचार्य अभयचन्द्रसूरि के पट्टधर आ. अमलचंद्र के उपदेश से थावक सिद्धराज, उसका पुत्र ढंग, उसका पुत्र चष्टक, पत्नी रल्हा, उनके पुत्र कुंडलिक और कुमारपालने भ. श्री आदिनाथ की प्रतिमा बनवाई। किले के पार्श्वनाथ मन्दिर में सं. १५०३ की भ. आदिनाथजी की भव्य प्रतिमा है। कालीदेवी के मन्दिर में “ ॐ स्वस्ति श्रीजिनाय नमः" से प्रारंभ किया हुआ सं. १५६६ का शिलालेख है। अतः यह मानना अनिवार्य है कि कांगडा यह जैनधर्म का प्राचीन प्रधान केन्द्र है और पंजाब का महान् तीर्थ है। (देखो-Sir Alexander Cunningham Archaeological Survey of Iudia Reports 1872-73 Vol. V.PP 163 H., विज्ञप्ति त्रिवेणी पृ. ९० से ९४, क्रान्तिकारी जैनाचार्य प्रस्तावना.) आ. जिनदत्तसूरिजी (वि. सं. १२०० के करीब ) आ. जिनदत्तसूरि ये छै कल्याणक के प्रतिष्ठापक आ. जिनवल्लभसूरि के पट्टधर व खरतर गच्छ के प्रधान आचार्य हैं । जब आप पंजाब में पधारे थे उस समय वहां भावड़ागच्छ राजगच्छ और वडगच्छ वगैरह का काफी जोर होगा, यही कारण है कि आपने उच्चानागर, मुलतान, लाहोर, दिल्ली और अजमेर (आप की स्वर्गभूमि) वगैरह में अपने पट्टधरो को चतुर्मास करने के लिये सापेक्ष निषेध किया है। सिन्ध में आप के करकमल से एक जिनप्रतिमा की प्रतिष्ठा होनेवाली थी उस में गड़बड़ हो गई और उस प्रतिमा की प्रतिष्ठा आ. शान्तिसूरिने कर दी । भटनेरा की माणिभद्र की प्रतिमा की घटना भी विचित्र है, जिसमें जनसंघ को उस प्रतिमा से हाथ धोना पड़ा था। उ. जयसागरजी (वि.सं. १४८४ ज्ये. शु.५) उपाध्याय जयसागरजीने फरीदपुर में एक श्रावक से पंजाब के तीर्थों का माहात्म्य सूना और बडे आश्चर्य के साथ उस प्रदेश में अपना विहार लंबाया । उस समय में पंजाब के देवपालपुर, नगरकोटतीर्थ (सुशर्मपुर तीर्थ साधु खीमसीकृत भ. शांतिनाथ और राजमहल में भ. आदिनाथ के मन्दिरों से विभूषित ) गोपाचलपुर तीर्थ (घिरिराजकृत भ. For Private And Personal Use Only

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