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વિદ્વાનાસે આવશ્યક પ્રશ્ન
[२५७ ]
नन्दविमलसूरिजी के समय में १६ वीं शताब्दी में हुई है। उनकी उत्पत्ति का वास्तविक वर्णन |
(६) दक्षिणविहारी श्रीयुत अमरविजयजी महाराज के शिष्य श्रीमान् चतुरविजयजी संपादित "जैन स्तोत्र संदोह ' प्रथम भाग को प्रस्तावना में सूचित निम्न सामग्री अथवा उसका वह भाग जिससे श्रीजिनवल्लभसूरिजी के विषय में तत्कालीन वर्णन है:
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(A) पृ. २३ चित्तौड़ के श्रीमहावीर जिन चैत्यकी प्रशस्ति । इसका खुदने का
संवत् भी सूचित करें ।
(B) पृ. २५ सं. ११३८ की लिखित विशेषावश्यक की ताड़पत्रीय टीका की प्रति में जो उक्त गणिजी के विषय का वर्णन है । ( एवं इसी पृष्ठ में वर्णित श्री चारित्र सिंहगणिजी कब हुए और वे किनके शिष्य थे ? ) (C) पृ. २५ स्वयं श्री जिनवल्लभजी गणिकृत प्रश्नोत्तर षष्ठिशतक काव्य या अष्टसप्तति काव्य में जैसा श्रीजिनेश्वरसूरिजी और श्रीअभयदेवसूरिजीका वर्णन किया हो उसकी नकल ।
(७) बीकानेर के इतिहास में बच्छावत मंत्री कर्मचन्दजी के वर्णन का अवतरण । (८) खरतरगच्छ शब्द से युक्त प्राचीन से प्राचीन लेख जो उपलब्ध हों । प्राचीन लेखोंकी तलाश में मुझे निम्न आठ लेख प्रकाशनार्थ प्राप्त हुए है:(A) कठगोला - मुर्शिदाबाद के श्री आदिनाथजी के मंदिर में सेः
(१) संवत् १९८१ माघशुदि ५ गुरौ प्राग्वाट ज्ञातीय वा । सं. दीपचंद
भार्या दीपादे पु. स. अबीरचंद अमीचंद श्रीऋषभदेव जिनबिंबं कारितं सुप्रतिष्ठितं खरतरगच्छे गणाधीश्वर श्रीजिनदत्तसूरिभिः । (२) संवत् १९८१ माघसुदि ५ गुरौ प्राग्वाट ज्ञाती वा । सं. दीपचंद भार्या दीपादे पु. स. अबीरचंद अमीचंद श्रीपद्मप्रभजिनबिंबं कारितं सुप्रतिष्ठितं खरतरगच्छे गणाधीश्वर श्रीजिनदत्तसूरिभिः (३) संवत् १९८१ माघ सुदि ५ गुरौ प्राग्वाट ज्ञाती वा । सं. दीपचंद भार्या दीपादे पु. स. अबीरचंद अमीचंद श्रीपार्श्वनाथजिनबिंबं कारितं सुप्रतिष्ठितं खरतरगच्छे गणाधीश्वर श्रीजिनदत्तसूरिभिः । (B) जैतारण में बाहिरके मंदिरमें सेः
(१) संवत् १९८१ माघखुद ५ गुरौ प्राग्वट ज्ञातीय सं. दोपचन्द भार्या
दिपादे पुत्र शा अबीरचन्द अमीचन्द श्री शान्तीनाथजी बींब कारा पीत सुवीहीत खरतरगच्छे गणाधीश्वर श्रीजिनदतसुरिभी ।
(२) संवत् १९६७ जेठब्द ४ गुरौ सं. रतुलाल भार्या रतनादे पुत्र शाकून मल श्रीचन्दाप्रभूजी बिंब कारापित सुवोहीत खरतरगच्छे गणाधीश्वर श्रीजिनदत्तसूरी भी ।
(३) संवत् १९७१ माघ सुक्ल ५ गुरौ सं हेमराज भार्या हेमादे पुत्र शा रूपचन्द रामचन्द श्रीपार्श्वनाथ बिंब कारापित खरतरगच्छे सुवीहीत गणाधीश्वर श्रीजीनदत्तसूरी भी ।
(४) ११७४ बेखास सुद २ सोम सं.. श्रीचन्दा प्रभूजिनबीब कारा
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