Book Title: Jain Satyaprakash 1940 03 SrNo 56
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [२२६] શ્રી જેન સત્ય પ્રકાશ [ वर्ष ५ शांतिनाथ मं.), नन्दवनपुर (भ. महावीर स्वामी.), कोटिल्ल (भ. पार्श्वनाथ.) और कोठीपुर में काफी तादात में जैन थे और जिनालय ये । (देखो विज्ञप्ति त्रिवेणि) जगदगुरु श्री हीरविजयसूरि (वि. सं. १३४० से १३४३) आचार्य श्री हीरविजयसूरीश्वरजी ये तपगच्छ के प्राभाविक आचार्य, जैनशासन के महान् ज्योतिधर थे । और अब्बुलफजल की मान्यतानुसार अकबर की धर्मपरिषद् याने विद्वद् मंडली के प्रथम श्रेणि के विद्वान थे । मुगल सम्राट अकबरने राजकर्मचारी मोंदी और कमाल को गंधार (गुजरात) में भेजकर बहु मानपूर्वक आप को फत्तेपुर-सीक्री पधारने का आमंत्रण दिया था। आचार्यदेव भी अमदावाल और जयपुर के रास्ते से विहार कर के वि. सं. १३३९ के ज्येष्ठ कृ. १३ (गुजराती मीती) के दिन परम सैद्धांतिक उ. विमलहषगणी, शतावधानी उ. शान्तिचंद्रगणी, पं. सहजसागरगणी, पं. सोमविजयगणी, पं. सिंहविमलगणी, महाकाव्यप्रणेता पं. हेमविजयगणी, महावैयाकरणी पं. लाभविजयगणी, पं. धनविजयगणी और ऋषि जगमाल प्रमुख ६७ साधुओं के साथ फत्तेपुर-सीक्री में पधारे और मुगल सम्राट को धर्मोपदेश दिया। सम्राट अकबर आप के उपदेश का श्रवण करके जैनधर्म का प्रेमी और निरामीषाहारी बना । अकबरने आप को एक ग्रंथभण्डार समर्पित किया, १-- गुजरात सौराष्ट्र २-फत्तेपुर-सीक्री, ३-नागपुर-अजमेर, ४-मालवा-दक्षिण ५-- लाहोर-मुलतान और ६ सूरिजी के पास रखने के लिये इस प्रकार ६ फरमानों से अपने सारे राज्य में भा. कृ. १० से भा. शु. ६ तक के १२ दिन, शाही का जन्म मास, सब रविवार, सब संक्रान्ति के दिन, नवरोजा का महिना, ईद के दिन, मिहर के दिन और सोफीआन के दिन इस प्रकार छै मास और छै दिन तक अमारि पालन करवाया, और आपको “जगद्गुरु" के बिरुद्ध से सम्बोधित किया। इसके उपलक्ष में मेडतावासी सदारंगजीने लोगों को बडा दान दिया, और दिल्ली के प्रदेश में प्रतिगृह प्रभावना बांटी । सम्राट अकबरने तीर्थों का मुंडकाकर (टेक्स) और जजीयाकर (टेक्स) माफ कर दिया और ५ तीर्थों का परवाना लिख दिया ।। आचार्य महाराजने इस प्रदेश में क्रमशः आगरा, फतेपुर, आगरा और अभिरामाबाद में चतुर्मास किये। आगरा, शौरीपुर और फतेपुर में जिन प्रतिष्ठा की और अकबर के प्रीतिपात्र श्रीमान् जैताशाह नागोरी को दीक्षा देकर जितविजय ऐसा नाम रखकर अपना शिष्य बनाया । आप अभिरामाबाद में विराज १ अब्बुलफजलने आइन-इ-अकबरी भाग-दूसरे की तीसरी आईन में अकबर की धर्मसभा (विद्वद् परिषद् ) के १४० सभासद के नाम दीये हैं और उनको पांच श्रेणि में विभक्त कर दिये हैं। उसमें प्रथम श्रेणि म आ. हीरविजयसूरिजी और पांचवीं श्रेणि म १३९ आ. विजयसेनसूरि तथा १४० उ. भानुचंदजी के नाम उल्लिखित हैं। For Private And Personal Use Only

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