Book Title: Jain Satyaprakash 1940 03 SrNo 56
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 30
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपाध्याय श्रीवल्लभ के तीन नवीन ग्रन्थ लेखक:-श्रीयुत अगरचन्दजी नाहटा खरतर गच्छ के उपाध्याय जयसागरजी की परम्परा के श्री ज्ञानविमलजी के विद्वान शिष्य उ. श्रीवल्लभ साहित्यक्षेत्र में सुप्रसिद्ध हैं । आपके रचित (१) "विजयदेवमाहात्म्य" श्रा जिनविजयजी के द्वारा संपादित हो कर कई वर्षों पूर्व प्रकाशित हो चुका है (२) "उपकेश शब्द व्युत्पत्ति" उपकेश गच्छ पट्टावली के साथ जैनसाहित्य संशोधक, पट्टवली समुच्चय एवं प्राचीन जैन इतिहास में प्रकाशित हो चुकी हैं। इनके अतिरिक्त आपके रचित व्याकरण कोष सम्बन्धी (३) शिलोचनामकोषटीका (सं. १६५४), (४) लिंगानुशासन पर दुर्गपदप्रबोधवृत्ति (सं. १६६१) एवं (५) अभिधाननाममालावृत्ति (सं. १६६७ जोधपुर) ग्रन्थ है इन में से २ या ३ ग्रन्थों को तपगच्छ के एक विद्वान मुनिराज प्रकाशित करने वाले थे। उन्होंने बुद्धिमुनिजी के मारफत हमसे इन ग्रन्थों की प्रतियें बीकानेर भंडारों से मंगवाई थी, पर उन्होंने उन्हें प्रकाशित करवाये या नहीं यह अज्ञात है । इनके अतिरिक्त (६) "अरनाथ स्तुति सवृत्तिका" का उल्लेख "जैनसाहित्यनो संक्षिप्त इतिहास" में पाया जाता है । साहित्यसंसार में अद्यावधि उ. श्रीवल्लभ के इतने ही ग्रन्थों का उल्लेख पाया जाता है, पर हमारी शोधखोज से आपके महत्त्वशाली तीग अन्य ग्रन्थों का पता और चला है, उन्हीं का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत लेख में दिया जा रहा है। आशा है साहित्यसेषियों को यह प्रयास रुचिकर एवं लाभप्रद प्रतीत होगा। [१] १. सारस्वतप्रयोगनिर्णय-इस ग्रन्थ की एक अपूर्ण प्रति गत मार्गशीर्ष मास में खरतर गच्छ की भावहर्षी शाखा के भंडार में देखने को मिली । यह प्रति २३ पत्रों की है और लिपिलेखक से अधूरी ही लिखी छोडी गई है, अतः ग्रन्थ अपूर्ण रह गया है। अन्य भंडारों में कहीं किसो सज्जन को पूरी प्रति हस्तगत हो तो वह मुझे सूचित करने की कृपा करें । ग्रन्थ की आद्य प्रशस्ति इस प्रकार है। आदि श्रीमच्छी शारदादेवी वरं वितरताद् वरम् । पण्डितानां नवे ग्रन्थविधाने विविधां धियम् ॥ १॥ For Private And Personal Use Only

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