Book Title: Jain Satyaprakash 1938 03 SrNo 32
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [२८८] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [१५ है। इन सब संघोकी उत्पत्तिके समयकी संगतिको बिठानेका हमने बहुत प्रयत्न किया, परिश्रम भी इस विषयमें खूब किया परन्तु सफलता नहीं हुइ (पृ३७ से ४०)। इस विषयमें हम इतना ही कह देना चाहते हैं कि-यापनियको छोड कर शेष तीन संधोका मूल संघसे इतना पार्थक्य नहीं है कि ये जैनाभास बतला दिये जायँ अथवा उनके प्रवर्तकोंको दुष्ट, महामोही जैसे विशेषण दिये जायं ग्रंथकर्ताने इस विषयमें बहुत ही अनुदारता प्रकट की है।''(पृष्ट-४५) दक्खिणदेसे विझे, पुक्कलए वीरचन्द मुणिन्नाहो ॥ अठारस एतीदे, भिल्लय संघं परुवेदि । गा० ४५ ॥ गाथा ४५-४६ में ग्रंथकर्त्ताने एक भविष्यवाणी की है। कहा जाता है कि विक्रमके १८०० वर्ष वीतने पर श्रवणबेलगुलके पासके एक गांव (पुष्कर ) में वीरचन्द्र नामका मुनि भिल्ल नामक संघको चलायगा। मालूम नहीं, इस भविष्यवाणीका आधार क्या है। कमसे कम भगवानकी कही हुई तो यह मालूम नहीं होती। क्योंकि इस घटनाके समयको बीते १७४ वर्ष वीत चुके, पर न तो कोई इस प्रकारका वीरचन्द नामका साधु हुआ और न उसने कोई संघ ही चलाया । ग्रंथकर्ताकी यह खुदकी “ईजाद" मालूम होती है। हमारी समजमें इसमें कोई तथ्य नहीं है" (पृ० ४५) जैनग्रंथ रत्नाकर कार्यालय, हीराबाग, बम्बईसे वि० सं० १३७४ में प्रकाशित श्रीयुत् नाथुराम प्रेमीजी लिखित दर्शनसार प्रथमावृत्तिको प्रस्तावना । .. पाठक समज गये होंगे कि-भ० देवसेनके ग्रंथ कैसे हैं ? और उसमें लिखि हुई बातें तथा ऐतिहासिक उल्लेख कितने सच्चे हैं ? (क्रमश:) ४. गोपुच्छकः श्वेतवासा, द्रावीडो यापनीयकः । निष्पिच्छश्चेति पंचैते, जैनाभासः प्रकीर्तिताः ॥ नीतिसार १० ॥ या पंचजैनाभासैरंचलिकारहितापि नग्नमूर्तिरपि प्रतिष्ठिता भवति, सा न वन्दनीया, न चाऽर्चनीया च ॥-श्रुतकीर्तिकृत षड्प्राभृत टीका ॥ __ दर्शनसार गा० २९ में यापनीय संघकी उत्पत्ति सं० २०५ या ७०५ में श्वे० साधु श्रीकलशसे कल्याणनगरसे बताई है, यह भी बिलकुल झुठ है। दिगम्बरीय यापनीय संघके शाक्टायन वगैरह आचार्य-स्त्री मुक्ति और केवलि आहारको मानते हैं अतः भट्टारकजीने उस संघको श्वेताम्बरीय शाखा बतानेको यह कारनामा रचा है। वास्तवमें राष्ट्रकूटवंशीय राजा प्रभुतवर्षका दानपत्र, दामिरसके रामबागका शिलालेख और कोल्हापुरके मंगलवार वस्तीके जिनालयकी जिनमूर्तिका लेख; इनसे निर्विवाद है कि-यापनीय संघ, नन्दीगण पुन्नागवृक्ष और मूल संघका अनुयायी दिगम्बर संघ है। (एपिग्राफिका इन्डिका जि० ४ नं०४६, बोम्बे हीस्टोरिकल सोसायटी पत्रिका जि० ४ पृ० १९२ से २००, कनडी पत्रिका जिनविजय) ( रॉयल एशियाटिक सोसायटी, बोम्बे बेंच जनरल जिल्द १२ सने १८७६) For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44