Book Title: Jain Satyaprakash 1938 03 SrNo 32
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 42
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [३१] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [१५ उसमें जयानन्द मुनिने अपने समय में लक्ष्मणीतीर्थ में 'लखमणीउर इक्कसय' और 'दुन्निसहस कणयभया' इन वाक्यों से १०१ जिनालय तथा उनके उपासक जैनों-श्रावकों के २००० घर होनेका उल्लेख कीया है । लक्ष्मणीतीर्थ के भूप्रदेश में चारों ओर दो दो मील पर्यन्त अनेक जिनालयों के खण्डहर, टीले स्वरूप दिखाई पड़ते हैं और उनेक नक्शीदार पत्थर इतस्तत: विखरे हुए पडे हैं, जो इस तीर्थ की प्राचीन जिनालय और जनसमृद्धि का भान अद्यापि करा रहे हैं और प्राचीन संस्कृति कला की याद दिला रहे हैं। किसी किसी खण्डहर के निरीक्षण से तो दर्शकों को उसकी शिल्पकला के लिये मुग्ध बनना पडता है ! उपलब्ध लेख, स्थापत्य और प्राचीन संस्कृति चिन्हों से इस निर्णय पर तो निःसन्देह आना पडता है कि यह पावन तीर्थ दो हजार वर्ष से भी अधिक पुराना है और विक्रमीय १६ या १७ वीं शताब्दी तक इस तीर्थ की जाहोजलाली कायम थी, बाद में मुसलमान बादशाहों के संघर्षण में मांडव के साथ साथ इसकी भी समृद्धि और जाहोजलाली मिटियामेट हो गई । ठीक ही है कि 'समय के फेरनतें सुमेरु होत माटी को' यह कहावत इस तीर्थ को भी लागु पड गई। For Private And Personal Use Only

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