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श्री लक्ष्मणी जैनतीर्थ की प्राचीनता लेखक-महोपाध्याय श्री यतीन्द्रविजयजी
लखमणी में बालुभीलाला के खेत से ता० २९-१०-३२ के दिन श्वेताम्बरजैनों के मान्य श्री पद्मप्रभस्वामी आदि जिनेश्वरों की प्राचीनतम १४ मूर्तियाँ प्रगट हुई, जो देखने में बडी मोहक हैं। उनमें ३ मूर्तियाँ उत्तमांग खण्डित होने से भण्डार दी गई । शेष मूर्तियाँ लक्ष्मणीतीर्थ के जीर्णोद्धार कराये हुए प्राचीन त्रिशिखरी जिनालय में ता. १३-१२-३७ के रोज स्थापन कर दी गई ।
भूगर्भ से प्रगट मूर्तियों में अन्तिम जिनेश्वर श्रीमहावीर प्रभु की मूर्ति जो इस समय पद्मप्रभप्रभु के दाहिने तरफ के जिनालय में विराजमान है, महाराजा सम्प्रति के समय की है, ऐसा उसके चिह्नों से जाहेर होता है। जैन इतिहासज्ञों के मन्तव्यानुसार महाराजा सम्प्रति ( संपदि ) का राज्याभिषेक इस्वीसन के ३१८ वर्ष पहले हुआ और इसका दूसरा नाम * प्रियदर्शिन् ' भी था। अतः लक्ष्मणीतीर्थ दो हजार वर्ष से भी अधिक पुराना मालूम पडता है।
श्रीपद्मप्रभस्वामी की मूर्ति जो ३७ इंची बडी है, एक हजार एक वर्ष की पुरानी है, ऐसा उसके 'संवत् १०९३ वर्षे वैशाख सुदि सप्तम्यां' इस लेख से मालूम होता है। उसके आसपास श्री मल्लिनाथ और नमिनाथ की श्याम रंग की ३२ इंची बडी जो दो मूर्ति हैं, वे भी इसी समय की प्रतिष्ठित हैं।
१ इस तीर्थ का प्राचीन नाम लक्ष्मणपुर या लक्ष्मणीपुर है जो किसी समय भारत प्रसिद्ध श्वेताम्बर जैन तीर्थ था। यह दोहद रेल्वे स्टेशन से ४४ मील ईसान कोण में है। स्टेशन से आलीराजपुर तक सर्विश मोटर
और वहाँ से लखमणी तक बैलगाडी जाती है। आलीराजपुर राजा के तरफ से लखमणी तक रोड का काम चालु है, उसके बन जाने बाद आलीराजपुर से लखमणी तक मोटर भी चालु हो जायगी। . २ लेख घिसा जाने से पूरा वांचा नहीं जा सकता, शिर्फ इतना ही वांचने में आता है।
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