Book Title: Jain Satyaprakash 1937 07 SrNo 23
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૧૯ર અષાડ શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ सिरिसेत्तुंजवाहिय-सयणामायण्णणप्पसंगंमि ॥ वरपुंडरीयणाम, णिसुयं सक्केण संपुढे ॥ ६॥ केण णिबंधणेणं, एयं णामं पयट्टियं भुवणे ॥ सासणणाहा हेउं, वयंति भवियाण बोहढें ॥ ७ ॥ . सिरिउसहतित्थवइणो, आसी भरहो सुओ महाचक्की ॥ तत्तणय उसहसेणो, णामंतरपुंडरीओत्ति ॥ ८॥ सारइयमेहसरिसं, जीविय मिह संपया तहा चवला ॥ भोगा किंपागसमा, ममया एएमु णो कुज्जा ॥९॥ विण्णा हिययरचरणं, सेवित्ता पाविऊण संतिसुहं ॥ पत्तसिवा होति तओ, तुम्भेऽवि तहा कुणह हरिसा ॥१०॥ आयण्णिऊण एवं, उवएस भाविमहुर मुल्लासा । पडिवज्जिऊण दिक्ख, संजाओ गणहरो पढमो ॥ ११ ॥ तिवईसवणाणंतर-प्पणीयसुंदरदुवालसंगसुओ ॥ विहरइ भव्वेऽणेगे, पडिबोहेइ प्पमोएणं ॥ १२ ॥ सो गामाणुग्गाम, विहरंतो समणपंचकोडीए ॥ परियरिओ संपत्तो, विमलायलतित्थसिहरंमि ॥ १३ ॥ सो पुंडरीयसामी, संपत्तो णिव्वुइं सपरिवारो ॥ चित्तस्स पुण्णिमाए, ता णामं पुंडरीयंति ॥ १४ ॥ एयम्मि वासरे जो, पोसहदाणचणं तवजवाइ ॥ पकुणइ सोऽण्णदिणेहि, पणकोडिगुणं फलं लहए ॥ १५ ॥ मज्झिमफलववहारा, पूयाइविहायगो य भवपणगे । णियमा पावइ मुर्ति, अंतमुहुत्ते जहण्णेणं ॥ १६ ॥ उक्किट्ठभावजोगा, झाणाणलदड्ढसव्वकम्ममला ॥ केवलणाणवियासा, सिद्धसिलामंडणा होज्जा ॥ १७ ॥ पूया पंचपयारा, वरविहिविहिया पयच्छए नाणं ॥ हिट्ठा सकिंदाई, सोचा वरपुण्णिमा महिमं ॥ १८ ॥ सिरिपुंडरीयतित्थे, जाया वरभत्तिभाविया केई ॥ सुहपुणिमातवंमि, पण्णरसहप्पमाणंमि ॥ १९ ॥ जीए चंदसिरीए, पइविरहो कारिओ वियारा ता ॥ For Private And Personal Use Only

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