Book Title: Jain Satyaprakash 1937 07 SrNo 23
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 40
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२८ અષાહ શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ विशेष :-- उपर्युक्त देवचंद्रजी कृत १ जिनशतक (पत्र ५), २ विचारषट्त्रिंशिका (पत्र ४), ३ पृथ्वीचंद्र रास (१६९६), ४ नवतत्त्व, ५ शत्रुजय चैत्यपरिपाटीस्तवन (गा० ११८), ६ महावीर २७ भवस्तवन (गा० ८८), ७ पोसीनापार्श्वस्तवन (गा० ६१), ८ शंखेश्वरस्तवन, ९ पार्श्व, नेमि, आदिनाथ स्तवनादि यहां के जयचंद्र भंडार में उपलब्ध हैं। सौभाग्यविजयनिर्वाण रास का ऐतिहासिक सार मेडता के शाह नरपाल की पत्नी इन्द्राणी की कुक्षि से आपका जन्म हुआ था । आपका जन्मनाम सावलदास रखा गया । श्री विजयसेनमूरि के पादसेवी वावक कमलविजय के शिष्य सत्यविजय के पास सं० १७१९ में आपने दीक्षा ग्रहण की। आपने सं० १७६२ का चौमासा दक्षिण देश के अवरंगाबाद में किया और कार्तिक कृष्णा ७ शनिवार पुष्य नक्षत्र रवियोग को प्रथम प्रहर में ८४ लक्ष जीवायोनि से क्षमतक्षामणा कर आप स्वर्ग सिधारे । श्रावकों ने देहसंस्कार बड़े महोत्सव के साथ किया । __अंतरिक्ष प्रभु के प्रसाद से, अवरंगाबाद में तपागच्छीय श्री विजयरत्नसूरि पदपंफजसेवी पं० सोमविमल सेवक युगलविमल के शिष्य रामविमल ने प्रस्तुत निर्वाणरास (गा० ६३) की रचना की। -(पत्र ६ की प्रति बोकानेर बृहत् ज्ञानभंडार में है।) विशेष :-- उपर्युक्त सौभाग्यविजयकृत तीर्थमालास्तवन (सं० १७५०) उपलब्ध है। प्रस्तुत तीर्थमाला में सं० १७४६ के चतुर्मास के पूर्ण होने के पश्चात् विजयप्रभसूरि की आज्ञा से यात्रा आरम्भ की गई । सम्मेतशिखाजो की यात्रा कर पटना में चौमासा कर आसपास के तीर्थों की यात्रा की । इस रास में उन सबका एवं गुजरात, काठियावाड और मारवाड के तीर्थों का ऐतिहासिक वर्णन है। ગ્રાહક ભાઈઓને જે ભાઈઓનું લવાજમ આ અંકે પૂર્ણ થતું હોય તેઓને આવતા અંક બહાર પડે તે અગાઉ પિતાના લવાજમના બે રૂપિયા મોક્લી આપવા વિનંતી છે. જે ભાઈઓ તરફથી આવી રીતે લવાજમની રકમ નહીં મળે તે તેઓને આવતો – ત્રીજા વર્ષને પ્રથમ – અંક વી. પી. થી મોકલવામાં આવશે. For Private And Personal Use Only

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