Book Title: Jain Satyaprakash 1937 07 SrNo 23
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 39
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir દે ઐતિહાસિક રા કા સાર ૧૨૭ उसी रूप से यदि वह पत्र देसाई के तंत्रीत्व में प्रगट होता रहता तो न मालूम कितने काव्य प्रगट हो कर इतिहास लेखन में परम सहायक होते । पर प्रस्तुत पत्र केवल ५ वर्ष तक ही मासिक रूप से उनके संपादकत्व में प्रकाशित हुआ। मैं जैन श्वेताम्बर कोन्फरेन्स के अधिकारियों से पुनः सादर साग्रह विज्ञप्ति करता हूं कि जैनयुग को पहले की तरह मासिक रूप से देशाई के सम्पादकत्व में प्रकाशित करने का विचार करें। तपागच्छीय भानुचन्द्र शिष्य देवचन्द्र-रास का ऐतिहासिक सार अहिम्मनगर के ओसवाल, अंबाईया गोत्रज रिंडो शाह की भार्या वरबाई की कुक्षि से आपका जन्म हुआ था। आपका जन्मनाम गोपाल था। जब आपको ९ वर्ष की अवस्था हुई तो आपके पिता का स्वर्गवास होगया । श्री विजयसेनसूरि का उपदेश श्रवण करने से गोपालकुंवर को वैराग्य उत्पन्न हुआ। और माता को समझा कर अपने भाई व माता के साथ पं० रंगचंद्र के समीप व्रत ग्रहण किया । आपका नाम देवचंद्र और आपके भाई का दीक्षित नाम विवेकचंद्र रखा गया । वा० भानुचंद्र के पास आपने विद्याध्ययन किया (और उन्हीं के शिष्यरूप से प्रसिद्ध हुए)। श्री विजयसेनसूरि ने सं० १६६५ में देवलबाडे में देवचंद्र को पंडितपद प्रदान किया। पंडितपद प्राप्ति के अनन्तर आपने यावज्जीव एकाशन और गंठसी के प्रत्याख्यान का नियम लिया । आपने मारवाड, मालवा, मेवाड, सोरठ, सवालक्ष, कुंकग, लाट, कान्हड, वागड, गुजरातादि देशों में विहार कर अनेक भक्तों को प्रतिबोध कर धर्मप्रचार किया था। आपने सात द्रव्यों का परिहार किया था : सालण्ड नीलु नहीं लेते थे; त्रस प्राणी के वध होने पर आम्बिल किया करते थे; तलीडं गुलिडं का त्याग किया करते थे; महीने में ६ उपवास किया करते थे। इस प्रकार विहार करते हुए सं० १६९७ में आप सरोतरा पधारे, वहां चातुर्मास किया। ५३ वर्ष की आयुष्य में वैशाख शुक्ला ३ को अनशन उच्चारण कर वैशाख शुक्ला ८ के प्रभात समय में आप स्वर्ग सिधारे । श्रावकों ने मांडवीरचनादि महोत्सब से अन्त्येष्टि क्रिया की । आपके बन्धु विवेक ( चंद्र ) ने प्रस्तुत रास (गा० १०३) की रचना की। ___ -(पत्र ५ हमारे संग्रह में नं० २५७२) १. आत्मानन्द जन्म शताब्दी अंक में श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई का लेख देखिये । For Private And Personal Use Only

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