Book Title: Jain Satyaprakash 1937 07 SrNo 23
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२० અષાડ શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ में लिखा हुवा है। मूर्ति के अग्र भाग की पाटली पर लंगोट (कौपीन ) दो इंच चौडा है और लंगोट का शिरा जंगायुग में से निकल कर तीन इंच बहार पाटली पर लटका हुवा है। इस लेख की नकल ता. १५ जून सन १९०२ ई० को प्रातःकाल १० बजे ली। यतिकृत पृष्ठ ८२ । इस मूर्ति के बदले दिगम्बरीय लोगों ने धारस्टेट में शु० दि० मु० नं० ११ सन १९०२ में दावा श्वेताम्बर लोगों के विरुद्ध किया था जिसका उनके विरुद्ध फैसला हुवा । यतिकृत पृष्ठ ९५-९६ लेख नं. ५। यह मूर्ति मांडवगढ के श्वेताम्बर मंदिर में मूल नायक तरीके स्थापन है और पद्मासनवाली होकर करीब २४ इंच ऊंची और पीतवर्ण की अति सुन्दर है। इस मूर्ति के लिये दंतकथा सुनने में आती है कि मांडवगढ में सरकारी रामजी मंदिर के पास एक भेयरे में से राम, लक्ष्मण, सीता, और शांतिनाथ की प्रतिमा करीब एक सौ वर्ष के पेस्तर निकली थी। उसमें तीन प्रतिमा वैष्णव संप्रदाय को होने से धारस्टेट तरफ से भायरे के नजदीक ही शिखरबंद मंदिर बनवा कर उसमें स्थापन की गई और उसके सेवा पूजा वगैरह के निभाव खर्च के लिये स्टेटने काफी जागोर कर दी। वह रामजी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध होकर महंतजी के वहीवट में है । और शांतिनाथ की प्रतिमा जैन होने से नगरसेठ अगरचन्दजी धनजी धारवाले ने प्राचीन जैन श्वे. मंदिर मांडवगढ में मूल नायकस् थापन किये। इस जैन मंदिर के निभाव खर्च के लिये स्टेट तरफ से कुछ भी जागीर नहीं दी गई है। (१७) स्वस्ती श्रीः ॥ श्री मंडप महादुर्गे ॥ संवत् १५५५ वर्षे ज्येष्ठ शुदी ३ सोमे श्री श्री वत्स सोनी श्री मांडण भार्या सुश्राविका तोला सुत सो (०) श्री नागराज सुश्रावकेण भार्या श्रा० मेलादे पुत्र सोनी श्री वर्द्धमान सो० पासदत्त द्वितीय भार्या श्राविका विमलादे पुत्र सोनी श्री जिणदत्त पुत्री श्राविका गुदाई वृद्ध पुत्री श्रा० पद्माई कुटुंब सहितेन स्वश्रेयसे ॥ श्री अंचेलगच्छेश श्री सिद्धांतसागरसूरी गामुपदेशेन ॥ श्री शांतिनाथ बिंबं कारितं ॥ प्रतिष्ठितं श्री संघेन ॥ श्री : ।। यह लेख पीतवर्ण धातु की ३० इंच ऊंची पद्मासनस्थ श्री शांतिनाथ प्रभु की मूर्ति के पृष्ठ भाग में लिखा है। और वह मूर्ति धारानगरी (धार ) के बनीयेवाडी के जूने मंदिर में बिराजित है। इसका लेख यतीजी ने ता. २१ जून सन १९०२ ई. को उतारा था । यतीजीकृत पुस्तक पृष्ठ ८३ व ९६ । नोट-नं. १५-१६-१७ के लेख से सोनी गोत्र के वंशजों ने मांडवगढ में ही प्रतिमा भराई व प्रतिष्ठा की है और नं. १६ व १७ के लेख से मांदराज और नागराज दोनों भाई हेांगे ऐसा अनुमान होता है। मांडवगढ में सोनगढ किला प्रसिद्ध है वह उन्ही सोनी वंशजो ने बनाया हो इसका उल्लेख फिर कभी करेंगे । For Private And Personal Use Only

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