Book Title: Jain Satyaprakash 1937 07 SrNo 23
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 31
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ૧૯૯૩ પુરાતન ઇતિહાસ અને સ્થાપત્ય ३. न स्वश्रेयसे श्री अजितनाथबिंबं कारितं । श्री वृद्धतपापक्षे श्री रत्नसिंहसूरि पट्टे विजयमान भ० उदयवल्लभसूरिभि ( : ) प्रतिष्टितं पं० उदय सोम ४. गणीनां प्र.. मूर्ति के अग्र भाग की पाटली के ऊपर लंगोट के आसपास ' श्री अजितं -- सो ० संग्राम' लिखा है । उज्जयिनी नगरी के देहरा खिडकी मुहल्ले में श्री चन्द्रप्रभु के वेताम्बर जैन मंदिर में श्री अजितनाथ प्रभु के श्वेत पाषाण के बिंब के पृष्ठ भाग में लिखे हुवे इस लेख की नकल ता. १७ मार्च सन १९०६ ई. को यतिजी' ने उतारी और लेख व मूर्ति के फोटो ता० १५-११-१९१६ को श्रीधर विनायक पित्रे फोटोग्राफर उज्जैन के द्वारा लिये गये । यह मूर्ति पद्मासनवाली होकर २० इंच ऊंची है। इसके पृष्ठ भाग का लेख लंबा २१ इंच और ४ पंक्तियों का है । इस मूर्ति को विक्रम संवत् १९८३ में ग्राम बदनावर, स्टेट धार के श्री आदिनाथ जैन श्वेताम्बर मंदिर में ले जाकर स्थापन की और सं० १९८४ के मार्गशिर शुक्ल ६ को प्रतिष्ठा द्वारा मूलनायकजी स्थापन किये | कुछ वर्ष बाद मूर्ति चलित हो जाने से सं० १९९३ के मैंने उक्त शिलालेख की नकल अपनी डायरी में उतारी । पुस्तक के पृष्ठ ७० में उक्त शिलालेख की नकल देखने में आई उससे संशोधन करके प्रकाशित की। इसको जगत प्रसिद्ध संग्राम सोनीने भरवाई व उसकी प्रतिष्ठा की है । (१६) संवत् १५४७ वर्षे माह सुदी १३ रवौ श्री मंडण सोनी ज्ञातिय श्रेष्ठ अर्जुन सुत श्रे० गोवलभार्या हर्षु । सुत पारिष मांडण भार्या श्राविका तीली सो. मदराज भार्यादा विव्हादे द्वि० भाललतादे । पुत्र २ सो० टोडरमल्ल सोनी कृष्णदास पुत्री बाई हर्षाई परिवार स । यह लेख शांतिनाथ भगवान की धातु की प्रतिमा के पृष्ठ भाग में तीन पंक्तियों Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only ૧૯ आसो कृष्ण १४ को तत्पश्चात् यतिजी कृत १. श्रीमान् यतिवर्य मानकचंदजी जगरूपजी इन्दौर निवासीने, मांडवगढ व मक्सी तीर्थ में ताम्बरी के ऊपर दिगम्बरियों की ओर से कोटों में फर्याद हुई उस वक्त सन १९०० के लगभग पुरावे के लिये शिलालेखों, पुस्तकों, शास्त्रों वगैरह के आधारों से वस्तुओं को संगृहीत की और उसको पुस्तक रूप से प्रकाशित करने का विचार किया । कार्य शुरु होने के पश्चात् वे स्वर्गस्थ हुवे और वह कार्य पूर्ण नहीं हुवा । जितना प्रेस में छपा था उसमें की एक कॉपी श्रीयुत काशीनाथ लेले धारवाले को मिली और वह पुस्तक इस वक्त श्रीयुत विश्वनाथ शर्मा इतिहास प्रेमी के पास होने से उस पुस्तक के आधार पर हमने बहुत शिलालेख व इतिहास का वर्णन उतारा है। अफसोस के साथ लिखना पडता है कि स्वर्गस्थ यतिजीने जैन समाज के लिये जो सेवा की थी उसको पूर्ण रूप से प्रकाशित करने के पेश्तर ही वे सिधार गये । वाचकों से विनंती है उक्त यतिजी कृत पुस्तक कहीं पर देखी हो कृपा कर मुझे अवश्य सूचना करे ।

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